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ठंड रख! || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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सभी समस्याओं से एक झटके में मुक्ति रामबाण सूत्र ठंड रख!

आचार्य प्रशांत: एक सीमा से ज़्यादा तनाव सहने की आदत ही नहीं होनी चाहिए।

“थोड़ा बहुत चलेगा, ज़्यादा करोगे तो हम सो जाएँगे।”

‘सो जाएँगे’ माने ग़ायब हो जाएँगे। ये जीवन जीने का एक तरह का तरीका है, एटिट्यूड (रवैया) है। एक कला है।

इसको साधना पड़ता है।

समझ रहे हैं?

“देखो भई, थोड़ा बहुत लोड (भार) हम ले लेंगे, पर हम एक सीमा जानते हैं। उस सीमा से ऊपर चीज़ें जब भी गुज़रेंगीं हम कहेंगे, ‘जय राम जी की’।”

हमें पता होना चाहिए कि इससे आगे हम नहीं झेलेंगे।

कोई भी चीज़ इस संसार की इतनी क़ीमती नहीं कि उसके लिए अपनी आत्यंतिक शांति को दाँव पर लगा दें।

इसके मायने क्या? इस बात का ज़मीनी अर्थ क्या हुआ?

इस बात का ज़मीनी अर्थ हुआ –

“ठंड रख!”

“होण दे!”

“मैंनू की!”

क्या?

“मैंनू की!”

सिरदर्द बहुत हो रहा है। किसका सिर? पड़ोसी का? पड़ोसी का नहीं, यही सिर, जिसको ‘अपना’ सिर कहते हैं। पर अपना सिर भी दर्द हो रहा है तो क्या बोलना है?

“मैंनू की।”

बैंक से फोन आया कि आप लुट गए, तबाह हो गए, आपके खाते से कोई सबकुछ निकाल कर ले गया। यहाँ से जवाब क्या जा रहा है? “मैंनू की। मुझे क्या फ़र्क पड़ता है। मेरा क्या है इसमें?”

व्यवहारिक अर्थों में ये चीज़ साक्षित्व के क़रीब हुई।

‘साक्षित्व’ का अर्थ ही है – निर्लिप्तता।

चेप नहीं हो जाएँगे।

‘चेप होना’ समझते हो? पकड़ लेना, जकड़ लेना।

“तुझे न छोड़ूँगी सैंयाँ।”

जब तक बाहर-बाहर कोलाहल है, तब तक हम बर्दाश्त कर लेंगे।

जैसे ही पाएँगे कोलाहल अब आत्मा पर छाने लगा है, हम कहेंगे, “अजी हटो!”

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