दुर्गासप्तशती के तीनों चरित्रों में देवी-असुर संग्राम के वर्णन एक समान क्यों हैं? || श्रीदुर्गासप्तशती पर (2021)

January 14, 2022 | आचार्य प्रशांत

आचार्य प्रशांत: नौवें अध्याय में प्रवेश करते हैं। तो हमने रक्तबीज का अंत देख लिया या रक्तबीज की मुक्ति देख ली।

राजा ने कहा – “भगवन! आपने रक्तबीज वध से संबंध रखने वाला देवी-चरित्र का यह अद्भुत माहात्म्य मुझे बतलाया। अब रक्तबीज के मारे जाने पर अत्यंत क्रोध में भरे हुए शुम्भ और निशुम्भ ने जो कर्म किया, उसे मैं सुनना चाहता हूँ।”

ऋषि कहते हैं – “राजन! युद्ध में रक्तबीज तथा अन्य दैत्यों के मारे जाने पर शुम्भ और निशुम्भ के क्रोध की सीमा न रही। अपनी विशाल सेना इस प्रकार मारी जाती देख निशुम्भ अमर्ष में भरकर देवी की ओर दौड़ा।" अमर्ष माने जब अपमान इत्यादि होता है तो उसके विरोध में जो क्रोध उठता है, उसे अमर्ष कहते हैं।

“उसके साथ असुरों की प्रधान सेना थी। उसके आगे, पीछे तथा पार्श्व भाग में बड़े-बड़े असुर थे, जो क्रोध से ओठ चबाते हुए देवी को मार डालने के लिए आए। महापराक्रमी शुम्भ भी अपनी सेना के साथ मातृगणों से युद्ध करके क्रोधवश चंडिका को मारने के लिए आ पहुँचा। तब देवी के साथ शुम्भ और निशुम्भ का घोर संग्राम छिड़ गया। वे दोनों दैत्य मेघों की भाँति बाणों की भयंकर वर्षा कर रहे थे। उन दोनों के चलाए हुए बाणों को चंडिका ने अपने बाणों के समूह से तुरंत काट डाला और शस्त्र समूहों की वर्षा करके उन दोनों दैत्यों के अंगों में भी चोट पहुँचाई।”


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आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।

आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें

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