January 15, 2022 | आचार्य प्रशांत
आचार्य प्रशांत: तो बार-बार देवता कहते हैं: उनको नमस्कार, उनको नमस्कार, उनको बारंबार नमस्कार है। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
ये क्यों बार-बार कहते हैं? क्योंकि मन के लिए दोहराव बहुत आवश्यक है; कोई बात एक बार बता दो, बात बनती नहीं है। मन तो पत्थर सरीखा है, उसको घिसना पड़ता है। इसीलिए आप जितने भी धर्मग्रंथ पाओगे, उनमें दोहराव बहुत ज़्यादा रहता है। आपको लगेगा भी कि कह तो दिया एक बार, बार-बार क्यों कह रहे हो? एक ही बात को दस बार, बीस बार, सौ बार दोहरा रहे हो ग्रंथ के भीतर ही और फिर इतना ही नहीं, जो उन ग्रंथों के वाचक होते हैं, पाठक होते हैं, वो भी फिर उन पाठों को ही न जाने कितनी बार दोहराते हैं। आप यदि गीता में श्रद्धा रखते हैं तो न जाने आप कितनी बार पढ़ोगे और दोहराते जाएँगे, दोहराते जाएँगे, दोहराते जाएँगे। कोई विस्मय कर सकता है, कहेगा कि अभी तक पूरी नहीं पढ़ पाए क्या?
लोग आते हैं, कहते हैं कि मैंने गीता पढ़ी है। वो गीता को उपन्यास आदि समझते हैं कि पढ़ लिया और ख़त्म कर दिया, निपटा दिया आदि। गीता, या उपनिषद या अन्य उच्च आध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ लिये नहीं जाते, पढ़ते ही जाते हैं, उनको बार-बार, बार-बार पढ़ना होता है। और आपके पाठ में ध्यान है तो जितनी बार आप पढ़ोगे, उतनी बार उनका नया अर्थ खुलता है। उनके नए अर्थ का खुलना ही द्योतक होता है आपके भीतर नए मन के खुलने का। आपका जो भीतर नया मन खुल रहा है, उसी के लिए तो ग्रंथ में नया अर्थ खुल रहा है, और यही बात ग्रंथ की सफलता की सूचक है कि ग्रंथ आपके भीतर एक नया मन खोल पाया।
आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।
आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें
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