April 16, 2022 | आचार्य प्रशांत
यस्मात्परं नापरमस्ति किंचिद्यस्मान्नाणीयो न ज्यायोअस्ति कष्चित्।
वृक्ष इव स्तब्धो दिवि तिष्ठत्येकस्तेनेदं पूर्ण पुरूषेण सर्वम्॥
जिससे श्रेष्ठ दूसरा कुछ भी नहीं, जिससे कोई भी न तो सूक्ष्म है और न ही बड़ा। जो अकेला ही वृक्ष की भाँति निश्चल जो आकाश में स्थित है, उस परम पुरुष से ही यह संपूर्ण विश्व संव्याप्त है।
~ श्वेताश्वतर उपनिषद् (अध्याय ३, श्लोक ९)
आचार्य प्रशांत: वह अकेला खड़ा है, आकाश का वृक्ष है वह। माने उसे कोई ज़मीन नहीं चाहिए अपनी जड़े पसारने के लिए। वह पृथ्वी का आधार लेकर नहीं खड़ा है, वह आकाश का पेड़ है। वो किसके आधार पर खड़ा? वो अपने ही आधार पर खड़ा है। और यह अंतर है दुनिया की किसी भी वस्तु में और सत्य में।
दुनिया की हर वस्तु खड़ी है किसी दूसरी चीज़ के समर्थन से, किसी दूसरी चीज़ का आश्रय, सहारा लेकर के। नतीजा, डर। नतीजा, पराधीनता।
तुम जो कुछ भी जानते हो, सोचते हो या जो कुछ भी तुम्हारे पास है, वह किसी-न-किसी दूसरी जगह से आया है, किसी दूसरे पर निर्भर है। इसीलिए तो फिर ग़ुलामी रहती है और भय भी रहता है। जो कुछ भी आश्रित है किसी दूसरे पर, वह कभी भी छिन सकता है न? जो कुछ भी आया है कहीं और से, वह पूरी तरह से तुम्हारा तो नहीं हो सकता न? कोई तुम्हें कुछ दे सकता है, तो दूसरा कोई तुमसे कुछ ले भी सकता है न?
वह अकेला है जो बिलकुल निराधार खड़ा है। दुनिया में 'निराधार' कोई बहुत ठीक शब्द नहीं माना जाता।
आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।
आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें
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