ये जो भीतर वाला है न, जिसको 'मैं' बोलते हो, ये बाहरी से ज़्यादा बाहरी है। और इससे ज़्यादा घातक कोई नहीं है तुम्हारे लिए। इसीलिए बार-बार बोलता हूँ कि बाहर से तो बाद में बचना, पहले तुम ख़ुद से बचो, अपने-आप से बचो, जो तुम्हारे भीतर बैठा है, उससे बचो। वही दुश्मन है तुम्हारा; वही ज़हर है तुम्हारा।
वो जो तुम्हारे भीतर बैठा है तुम्हारी 'बुद्धि' बनकर, जो तुम्हारे भीतर बैठा है 'मैं' बनकर, वो जो भीतर बैठा है तुम्हारा 'सलाहकार' और 'शुभचिंतक' बनकर, वो तुम्हारा सबसे बड़ा बैरी है।
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आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।
आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें
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