तो इसका मतलब ये है कि तुम कौन-सी चीज़ जीवन के लिए आवश्यक समझते हो, तुम कौन-सी चीज़ बाज़ार से ख़रीदने भागते हो, इसका तुम्हारी असली ज़रूरतों से कम ताल्लुक है, और तुम्हारे समाज की संस्कृति से ज़्यादा ताल्लुक है।
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आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।
आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें
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