January 16, 2022 | आचार्य प्रशांत
आचार्य प्रशांत: छठा अध्याय — धूम्रलोचन वध (एक के बाद एक वध ही वध हैं।)
तो दूत तो भाई अपमानित सा चेहरा ले करके गया दैत्यराज के पास, तो दैत्यराज ने भी अपेक्षा नहीं करी थी कि एक स्त्री उनका विवाह प्रस्ताव ठुकरा देगी, वह भी तब जब उन्होंने इंद्र को हरा रखा है, त्रिभुवन को जीत रखा है और ये सारी बातें। तो वो एकदम अपमानित और कुपित हो गए और उनके अपने सेनापति थे धूम्रलोचन, उनसे बोला, “धूम्रलोचन, तुम शीघ्र अपनी सेना साथ लेकर जाओ और उस दुष्टा के केश पकड़कर घसीटते हुए उसे बलपूर्वक यहाँ ले आओ।” यह तो ये विवाह करने को आतुर थे, विवाह था या इनका बलात्कार का मन था।
ऐसे होते हैं भोगी, ये बस प्रकृति का शोषण और उत्पीड़न करना चाहते हैं। देख रहे हो? नारी के प्रति घोर असम्मान, कि विवाह प्रस्ताव भेजा है और स्वीकार नहीं हुआ तो कह रहे हैं कि जाओ और उसके केश पकड़कर घसीटते हुए यहाँ ले आओ। स्पष्ट ही है कि ऐसों का अंत होगा, देवी इनका नाश करेंगीं। “और धूम्रलोचन, अगर उस स्त्री की रक्षा के लिए कोई दूसरा वहाँ खड़ा हो, चाहे देवता, यक्ष या गंधर्व तो उसे मार अवश्य डालना।” तो प्रकृति का तो शोषण करेंगे और जो प्रकृति की रक्षा के लिए खड़े होंगे, उन्हें मार डालेंगे, यह दैत्यों की निशानी है। प्रकृति का शोषण करना है और उसकी रक्षा के लिए जो भी कोई खड़ा हो, उसको मार ज़रूर डालना।
आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।
आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें
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