देवगण असुरों से बार-बार क्यों हारते हैं? || श्रीदुर्गासप्तशती पर (2021)

January 17, 2022 | आचार्य प्रशांत

आचार्य प्रशांत: श्रीदुर्गासप्तशती के उत्तर चरित्र में अब हम प्रवेश करते हैं। यह तीसरा और अंतिम चरित्र है ग्रंथ का और इसमें हमें देवी के सतोगुणी रूप के दर्शन होते हैं। देवी यहाँ माँ महासरस्वती के रूप में आविर्भूत होंगी। तो कथा आगे बढ़ती है, आपको स्मरण होगा कि चौथे अध्याय के अंत में महिषासुर वध के उपरांत देवताओं ने देवी महालक्ष्मी की भावपूर्ण स्तुति की और देवी ने उनसे वर माँगने के लिए कहा।

तो देवताओं ने कहा कि महिषासुर से ही हमें आतंक था और आपने हमें अभय दिया है, अब और क्या वर माँगें। पर यदि वर माँगना ही है तो यही कि भविष्य में भी जब हम आपकी स्तुति करें और कष्ट में, आपदा में आपकी स्तुति करें तो आप आ करके हमारी रक्षा कीजिएगा। तो देवी ने कहा था, "तथास्तु।” इसके अतिरिक्त देवताओं ने यह भी कहा था कि आप वर दीजिए कि जो भी मनुष्य आपके चरित्र का भक्तिपूर्वक, ध्यानपूर्वक पाठ करें, उनको आप श्री, धन-धान्य, भक्ति और बुद्धि का वरदान दें। देवी ने वर दिया था और अंतर्ध्यान हो गईं थीं।

तो हम पहले भी कई बार कह चुके हैं कि देवता पूर्ण नहीं हैं, देवता प्रकृति के चक्र में ही हैं, और प्रकृति के चक्र में तो बस लहरें मात्र होती हैं—कभी ज्वार, कभी भाटा; कभी धूप, कभी छाँव; कभी अच्छे दिन, कभी बुरे दिन। तो इंद्र आदि देवताओं ने महालक्ष्मी के वरदानस्वरूप एक लंबे काल तक सुख और राज्य भोगा। और तदुपरांत समय ने फिर करवट बदली—जैसी समय की प्रकृति है—और इस बार देवताओं का अनिष्ट प्रकट हुआ किन दो महा-दैत्यों के रूप में?


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आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।

आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें

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