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लेख
ख़ास अनुभव की चाहत! || श्वेताश्वतर उपनिषद् पर (2021)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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ततो यदुत्तरतरं तदरूपमनामयम्। य एतद्विदुरमृतास्ते भवन्त्यथेतरे दुःखमेवापियन्ति।।

जो उस (हिरण्यगर्भ रूप) से श्रेष्ठ है, वह परब्रह्म परमात्मा रूप है और दुखों से परे है, जो विद्वान उसे जानते हैं, वे अमर हो जाते हैं, इस ज्ञान से रहित अनन्य लोग दुःख को प्राप्त होते हैं।

~ श्वेताश्वतर उपनिषद् (अध्याय ३, श्लोक १०)

आचार्य प्रशांत: हिरण्यगर्भ पर हमने पिछले सत्र में भी चर्चा करी थी। हिरण्यगर्भ माने? जगत की उत्पत्ति का कारण, प्रथम पुरुष। ठीक है? माने जगत की शुरुआत। हिरण्यगर्भ है किसके तल पर? जगत के ही तल पर। हिरण्यगर्भ फिर वह है जिससे समस्त नर-नारी, पशु-पक्षी और जड़-चेतन, जंगम-स्थावर सब कुछ प्रकट हुआ है। तो हिरण्यगर्भ इस संसार में सबसे पहला है लेकिन है वह अभी भी इस संसार में ही। संसार में पहला है लेकिन है संसार का ही। तो ब्रह्म को हिरण्यगर्भ से भी श्रेष्ठ कहा गया है। माने जो संसार में श्रेष्ठतम है उससे भी श्रेष्ठ है वह।

यह बात खासतौर पर उनके लिए है जो कहते हैं कि, "दुनिया में ही हम उच्चतम को पा लेंगे, या हमारी ऊँची-से-ऊँची उपलब्धि है वह संसार में ही हो जाएगी।" संसार में जो प्रथम है, हिरण्यगर्भ, ब्रह्म को उससे भी श्रेष्ठ कहा जा रहा है। तो तुम संसार में प्रगति करके कितनी दूर तक पहुँच जाओगे?

संसार में प्रगति करने का वास्तविक अर्थ समझो। संसार में प्रगति करने का वास्तविक अर्थ है संसार का उपयोग करके शनैः-शनैः संसार से मुक्त होते चलना। संसार को जानते चलना – यह है संसार में प्रगति। संसार में प्रगति का मतलब यह नहीं होता कि दो गाड़ियाँ नई खरीद लीं, कुछ और ज़्यादा पैसा आ गया है, पचास और लोग जानने लग गए हैं इत्यादि, इत्यादि।

हम आमतौर पर इन्हीं सबको तरक्की का द्योतक समझते हैं न? कोई कहे कि 'साहब, फलाने की बहुत तरक्की हो रही है', तो क्या मतलब समझोगे? और महँगे कपड़े पहनने लग गया, विदेश घूमने लग गया है इत्यादि, इत्यादि। यही तो समझोगे, नहीं?

संसार में तरक्की का वास्तविक अर्थ क्या है?

कि पहले वह संसार को जैसा जानता था अब संसार को उससे बेहतर जानने लग गया है। जितना तुम संसार को बेहतर जानोगे, उतना तुम संसार से आज़ाद होते चलोगे। और यही इस संसार में होने का सार्थक उपयोग, वाजिब मकसद है। क्या? जानते चलो और पीछे छोड़ते चलो।

सवाल यह कि क्या पीछे छोड़ने के लिए जानना ज़रूरी है? जी। जानेंगे कैसे? अनुभवों के माध्यम से। तो संसार का अनुभव लेते चलना है। तो इसका मतलब खूब सारे अनुभव लेना चाहिए? नहीं। अनुभव तो प्रतिक्षण हो ही रहे हैं तुमको। जैसे ही तुम कहते हो 'इसका मतलब हमें अनुभव में कूद पड़ना चाहिए', तुम्हारी आशा यह होती है, तुम्हारी कामना यह होती है कि अनुभवों के माध्यम से अब सुख लूटेंगे।

अनुभव इसलिए नहीं है कि तुम उनसे सुख लूटो, अनुभव इसलिए हैं जीवन के ताकि तुम उनसे सीखो, जानो। अनुभवों की गहराई में प्रवेश कर जाओ, जान जाओ कि यहाँ वास्तविक बात क्या चल रही है, और जान करके उस चीज़ के फिर आगे बढ़ जाओ। इसलिए जीवन के समस्त अनुभव होते हैं।

तो क्या किन्हीं विशेष अनुभवों की ज़रूरत पड़ती है जीवन में? नहीं। अनुभव तो प्रतिपल हो ही रहे हैं। कौन है जिसे अनुभव नहीं हो रहे? यहाँ बैठे हो तो भी अनुभव हो रहे हैं, तुम यहाँ नहीं बैठे होते तो भी अनुभव हो रहे होते। तुम जहाँ कहीं भी हो तुम सीखते चलो। हाँ, तुम सीखते चलोगे तो तुम्हारा अगला अनुभव बदल जाएगा, क्योंकि पिछले अनुभव की सीख अब तुम्हारे काम आएगी जब तुम अगले अनुभव का चयन कर रहे होओगे।

अनुभव होने के लिए एक विषय चाहिए न? वह तुम ही चुनते हो। उदाहरण के लिए तुम अभी यहाँ पर बैठे हुए हो तो तुमने चुना है कि तुमको इस सत्र का अनुभव हो। कोई लाजवाब ऐसा भी हो सकता है कि यहाँ से उठकर जाए और वहाँ सोना शुरू कर दे, बगल के कमरे में। तो उसने चुना है बिस्तर को। तो अनुभव तो दोनों ही हैं, लेकिन अगर तुमने ज़िंदगी सही जी है, तो अतीत के तुम्हारे अनुभव तुम्हें यह सिखा गए होंगे कि तुम्हें अगले अनुभव में किस विषय का चयन करना है, सत्र कक्ष का या शयन कक्ष का।

तो मैंने दोनों बात कही। मैंने कहा पहली बात तो यह कि जो भी तुम्हें अनुभव हो रहा है उससे सीखो। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम अंधे अनुभवों को जीवन में आमंत्रित करते रहो। अगर तुमने वास्तव में सीख ही लिया अनुभवों से, तो अगले अनुभव का तुम्हारा चयन ही बदल जाएगा, सार्थक हो जाएगा। इसलिए एक व्यक्ति को जो अनुभव होते हैं, दूसरे को वह नहीं होते, दूसरा उनका चयन ही नहीं करता।

और इसीलिए बहुधा देखा गया है कि चेतना के ऊँचे स्तरों पर पहुँचा हुआ व्यक्ति जैसे चुनाव करता है, वह बड़े अनुपम, बड़े विलक्षण होते हैं। आम लोगों की समझ में नहीं आता कि यह इसने क्या चुन लिया, क्यों चुन लिया। वह उसने इसलिए चुन लिया क्योंकि वह आज तक जो कुछ भी चुनता आ रहा था उससे सीखता आ रहा था। जो कुछ वह सीखता आ रहा था, उसी ने उसको प्रेरणा दी और संकल्प दिया और हौसला दिया कि अब वह और भी कुछ विलक्षण चुन सके, नायाब चुन सके, अलग चुन सके।

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