देवी उपासना का रहस्य और उद्गम || श्रीदुर्गासप्तशती पर (2021)

January 2, 2022 | आचार्य प्रशांत

आचार्य प्रशांत: नवदुर्गा का आरंभ हो चुका है और उचित ही है कि इस काल में हम पूरे ध्यान, पूरे समर्पण के साथ देवी-विषयक चर्चा करें। मैं संदर्भ को थोड़ा व्यापक रखना चाहूँगा ताकि हम बात को बिल्कुल मूल से समझ सकें और जितने भी लोग यहाँ उपस्थित हैं, सब से आग्रह रखूँगा कि एकदम साथ-साथ चलें, पूछते चलें, स्पष्टीकरण माँगते चलें। उससे आप लोगों को भी और बाद में भी जितने लोग इस चर्चा को देखेंगे और सुनेंगे, सबको सुविधा रहेगी।

तो ‘देवी’ शब्द जब हमारे कान में पड़ता है तो हमें सबसे पहले ध्यान आता है मंदिरों में जो हमने देवियों की मूर्तियाँ देखी हैं, जिनकी हमने उपासना करी है, आरतियाँ की हैं। पर देवी की उपासना जितना हम सोच सकते हैं, उससे कहीं ज़्यादा पुरानी है। मातृशक्ति में कुछ ऐसा रहस्य रहा है मानव चित्त का, देवी शक्ति, माँ, मातृदेवी या मातृशक्ति के प्रति कुछ ऐसा खिंचाव रहा है कि मानवीय चेतना के लगभग आरंभ से ही मनुष्य किसी-न-किसी रूप में मातृशक्ति का उपासक रहा है।

जो पुरापाषाण काल है, पेलियोलिथिक एज, जिसमें हमारा निन्यानवे प्रतिशत इतिहास है, अभी बारह-चौदह हज़ार साल पहले तक हम उसी काल में थे।


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आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।

आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें

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