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डॉक्टर हो या व्यापारी, इंस्टाग्राम क्वीन सब पर भारी || (2021)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: मैं एक डॉक्टर हूँ, पिछले पाँच सालों से मैं देख रहा हूँ कि समाज में कुछ क्षेत्रों के लोगों के लिए इज़्ज़त एकाएक बढ़ गई है। आज कोई भी शिक्षकों को, प्रोफेसरों को, डॉक्टरों को इज़्ज़त या सम्मान या वैसी ही पापुलैरिटी (लोकप्रियता) और रिकॉग्निशन (पहचान) नहीं दे रहा है जिसके वो हक़दार हैं। मैं ये इस संदर्भ में बोल रहा हूँ कि कोरोना काल में डॉक्टरों ने बहुत प्रयत्न किए हैं, सैकड़ों डॉक्टरों की जान भी गई है, फिर भी मैं देखता हूँ कि बड़े शहरों में, छोटे शहरों में कई दफे डॉक्टरों पर हमला हो जाता है। उन्हें मारपीट दिया जाता है। जितने भी व्यवसाय पारंपरिक रूप से बौद्धिक क्षेत्र से संबंध रखते हैं, उनकी कीमत आज कम हो रही है। मतलब जिसमें ज्ञान चाहिए होता है, पढ़ाई चाहिए होती है, उनकी वैल्यू , उनकी कीमत आज कम हो रही है जैसे टीचर्स (शिक्षक), प्रोफेसर्स (प्राध्यापक), डॉक्टर्स (चिकित्सक) वगैरह। और साथ-ही-साथ इंस्टाग्राम इनफ्लुएंसर्स और यूट्यूबर्स और पॉडकास्टर्स और सिंगर्स (गायक), डांसर (नर्तक) ये सब भगवान बनते जा रहे हैं। मैं समझना चाह रहा हूँ ऐसा क्यों है?

आचार्य प्रशांत: जो बात है वो तो आपने ख़ुद ही यहाँ पर स्पष्ट कर ही दी है। समाज में ज्ञान के प्रति सम्मान बहुत तेज़ी से कम हो रहा है। देखिए हम इंसान हैं; इंसान दो चीज़ें होता है — निचले तल पर जो शारीरिक वृत्तियाँ हैं, बॉडिली टेंडेंसीज हैं, इंसान वो होता है। जैसे आप बोलें कि इंसान वो है जो खाता है; इंसान वो है जो चलता है; इंसान वो है जो पैदा होता है; इंसान वो है जो मरता है। एक तरीका ये है इंसान को परिभाषित, डिफाइन करने का, है न? और दूसरा तरीका ये है कि आप कहें इंसान वो है जो सोचता है; इंसान वो है जो समझता है; इंसान वो है जिसके पास ज्ञान होता है। ये दूसरा तरीका है इंसान को परिभाषित करने का।

जो पहला तरीका है वो शरीर पर आधारित है, बॉडिली है और जो दूसरा तरीका है वो चेतना पर, कॉन्शियसनेस पर आधारित है और आप दोनों ही तरीकों से इंसान को परिभाषित कर सकते हैं। तो जो हम हैं, जो पूरी मानवता है, जो पूरी ह्यूमैनिटी है, वो ये दो चीज़ें हैं।

आप जब किसी को देखते हो तो उसको इन्हीं दो तरीकों से देखोगे हमेशा। या तो उसको आप देख सकते हो कि वो एक चलने-फिरने वाला जीव है जो सोता है, जगता है, खाता है, जिसके पास एक शरीर है। उसको आप इस तरीके से देख सकते हो या उसको आप देख सकते हो कि ये एक सोचने-समझने, जानने वाला जीव है। आप उसे कैसे देखते हो वो इस पर निर्भर करेगा कि आप इन दोनों चीज़ों में से कीमत किसको ज़्यादा देते हो। किन दोनों चीजों में से? कि शरीर है आपका और आपकी जो बॉडिली , जो एनिमल टेंडेंसीज (पाशविक वृत्तियाँ) हैं वो हैं आप, उसको ज़्यादा कीमत दे रहे हो या आप कॉन्शिसनेस को, माइंड को, थॉट (विचार) को, अंडरस्टैंडिंग (समझ) को ज़्यादा कीमत दे रहे हो?

जिस भाषा में प्रश्नकर्ता ने लिखा है तो मुझे जवाब भी हिंग्लिश (हिंदी-अंग्रेजी मिश्रित) में देना पड़ेगा क्योंकि उन्होंने ख़ुद भी काफी मिश्रित तरीके से लिखा है अंग्रेजी बोलते हुए। समझ पाएँगे इसलिए मैं हिंग्लिश में बोलूँगा।

अब इन दोनों तरीकों में से ज़्यादा आसान तरीका क्या होता है किसी की ओर देखने का? आपको किसी को देखना है तो या तो आप ऐसे देख सकते हो कि वो एज़ अ बॉडी (शारीरिक रूप से) कैसा है या आप उसे ऐसे देख सकते हो कि वो ऐज़ अ थिंकर (वैचारिक रूप से), ऐज़ अ नोअर (बौद्धिक रूप से) कैसा है। इन दोनों में से ज़्यादा आसान तरीका क्या है? ऐज़ अ बॉडी देखना क्योंकि हमारी भी जो टेंडेंसीज हैं सारी, वो तुरंत क्या हैं? बॉडी बेस्ड (शरीर आधारित) हैं।

आप जब किसी की ओर देखते हो तो आपकी आँखें क्या दिखाती हैं आपको? उसकी चेतना की ऊँचाई या उसके शरीर का आकार? शरीर का आकार। तो हम बने ही ऐसे हैं, प्राकृतिक रूप से, कि जितनी भी निचले तल की चीज़ें हैं हमें वही ज़्यादा खींचती हैं। फिजिकल (भौतिक) चीज़ें, और ऐसी चीज़ें जिनमें दिमाग ज़्यादा नहीं लगता। ऐसी चीज़ें जिनकी ओर जानवर भी आकर्षित होते हैं, हमें वही ज़्यादा खींचती हैं। वो हमको जन्म से डिफॉल्ट (स्वत:) मिली हैं, हम उनकी और खिंच ही जाते हैं।

ज्ञान की ओर हम तब खिंचते हैं जब मेहनत करते हैं। उसके लिए जान लगानी पड़ती है। और बॉडी की ओर हम यूँ ही खिंच जाते हैं बिना कुछ करे, बाइ डिफॉल्ट * । और अगर समाज ऐसा हो कि उसमें ये जो निचली चीज़ों की ओर खींचने वाले लोग हैं, इन्हें प्रोत्साहित भी किया जा रहा हो, सम्मान देकर के और पैसा देकर के तो समझ लीजिए कि पूरा समाज ही ऐसा हो जाना है जो * वैल्यू ही करता है ज़िंदगी की घटिया चीज़ों को।

एक तो हम पैदा हो रहे हैं और पैदा होते ही हमें बस मैटेरियल ऑब्जेक्ट्स (भौतिक वस्तुएँ), बॉडिली थिंग्स (शारीरिक वस्तुएँ) दिखाई देती हैं और दूसरी ओर समाज और संस्कृति ही पूरी ऐसे बन गए हों जो इस तरह की चीज़ों पर चलने वालों को पुरस्कृत भी करते हों, रिवार्ड भी करते हों तब तो पूरा समाज ही ऐसा हो जाना है जिसमें ज्ञान के लिए बहुत कम कीमत बचेगी और छिछोरी और पॉपुलिस्ट चीज़ों के लिए ज़्यादा कीमत बचेगी।

एक नॉलेज बेस्ड सोसाइटी बनाने के लिए, एक ऐसा समाज बनाने के लिए जिसमें ज्ञान की कुछ कद्र है, मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन एक ऐसा समाज बनाने के लिए जिसमें शरीर दिखाने वालों को इज़्ज़त और पैसा मिल रहा है या फ़िज़ूल व्यर्थ गॉसिप (गप-शप) करने वालों को इज़्ज़त मिल रही है और वो सेलिब्रिटी बन रहे हैं, सुपरस्टार बन रहे हैं, कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती, वो काम अपने-आप हो जाएगा। आप डॉक्टर हैं, एमबीबीएस करने के लिए आपने बड़ी मेहनत करी होगी, गॉसिप करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है?

अब आप डॉक्टर हो, एक डॉक्टर के स्तर से, डॉक्टर के ओहदे से आकर के जनता को दो बातें बताने के लिए आपको दस साल तक शिक्षा लेनी पड़ी, मेहनत करनी पड़ी, है न? करना पड़ा न ये? दस साल ज़िंदगी के लगाए तब जाकर आप किसी को कुछ बता पाओगे। मान लीजिए कोरोना के बारे में या वैक्सीन के बारे में।

और कोई यूँ ही छिछोरा यूट्यूबर उठ करके आएगा और वो इंटरनेट पर दो मिनट गूगल करेगा और वो फट से बोल देगा — हाँ जी, कोरोना ऐसा होता है, वैक्सीन ऐसी होती है। और अगर समाज ऐसा है जो मेहनत को और ज्ञान को सम्मान और तवज्जो नहीं देता तो आपकी बात से ज़्यादा उस यूट्यूबर की बात सुनी जाएगी। क्योंकि आप तो एक गंभीर तरीके से, एक पढ़े-लिखे आदमी के तरीके से अपनी बात को बताओगे। आप कोई मिर्च मसाला करके, राग-रंग करके तो अपनी बात बताओगे नहीं। वो जो यूट्यूबर आएगा वो सारे दाँव-पेंच जानता है। वो बहुत रंगीन तरीके से बात बताएगा, भले ही उसे कुछ नहीं पता हो, उसे क्या पता वैक्सीन के बारे में? पर वो बताएगा उसके मिलियन्स में व्यूज हो जाएँगे। आप बताओगे आपकी कोई नहीं सुनेगा।

ये क्यों है? क्योंकि जो लोग समाज में आज हैं, उनकी शिक्षा में एक मूल भूल हो गई है। भूल ये हो गई है कि ज्ञान को महत्व देना उन्हें नहीं सिखाया जा रहा है। उन्हें सिखाया जा रहा है शरीर को महत्व देना, बॉडी (शरीर) को महत्व देना, चेतना की, कॉन्शिसनेस की जो निचली चीज़ें होती हैं उनको महत्व देना। ज्ञान फिज़ूल-सा बन गया है।

किसी को ज्ञानी बोल दो तो ऐसा है जैसे तुमने उसको गाली दे दी। इसीलिए जिन व्यवसायों में ज्ञान का काम है और जो लोग ज्ञान, समझदारी, जानकारी से बोलते हैं, उनको ना तो सम्मान है ना पहचान है। इसका नतीजा क्या निकलेगा? नतीजा ये निकलेगा कि तुम जिस चीज़ को महत्व दे रहे हो वही चीज़ हावी होती जाएगी।

तुम चेतना की ऊँचाई से ज़्यादा महत्व अगर आदमी की पशुता को दे रहे हो तो पूरा समाज पशुवत् होता जाएगा। हम सब जानवर बनते जाएँगे। जो शरीर दिखा-दिखा कर घूम रहे हैं, जो गालियाँ दे-देकर सुपरस्टार बन जाते हैं, अगर तुम्हें उनको ही महत्व देना है तो याद रखो कि शरीर तो जानवरों के पास भी होता है। सब जानवर जैसे ही हो जाएँगे हम लोग।

हम ये भी नहीं देखते कि आज हम जहाँ तक पहुँचे हैं ऐज़ ह्यूमैनिटी (इंसानियत के तौर पर), ये जो मानवता है उसमें ज्ञान का कितना योगदान है। आदमी अगर थोड़ा भी होश में हो और अपने चारों ओर ऐसे सिर घुमा कर देख ले तो उसे एक-एक चीज़ ऐसी दिखाई देगी जिसको बनाने में, जिसके बारे में जानने में कई बार सैकड़ों सालों की मेहनत लगी है।

पर हम बेहोश हो गए हैं। हमको उन चीज़ों के पीछे की मेहनत नहीं दिखाई देती। हमें ज्ञान का महत्व नहीं दिखाई देता। हमारे सामने ये सब लोग जब आ जाते हैं तो हम बावले हो करके इनके पीछे घूमने लग जाते हैं। यही जिनके नाम प्रश्नकर्ता ने लिखे हैं — इंस्टाग्राम इनफ्लुएंसर्स , युटयुबर्स , पॉडकास्टर्स , सिंगर्स , डांसर्स , क्यों? क्योंकि ये लोग आ करके हमारी इंद्रियों को, हमारे भीतर की पशुता को, हमारे भीतर के जानवर को उत्तेजित करते हैं। और हम दो हैं न, एक नीचे से जानवर है और ऊपर से चेतना है। लेकिन जानवर को उत्तेजित करना ज़्यादा आसान है। जानवर हम, जैसा हमने अभी कहा, जन्म से होते हैं, बचपन से होते हैं और ज्ञानवान हमें मेहनत करके बनना पड़ता है। तो हम कहते हैं — कौन मेहनत करे ज्ञान वगैरह की!

अगर जानवर बने रहकर ही प्रसिद्धि मिल जाती है और पैसा मिल जाता है तो जानवर बने रहना ज़्यादा मुनाफे की बात है — ये हमारा तर्क है। (प्रश्नकर्ता को सम्बोधित करते हुए) आपको इसमें बात को व्यक्तिगत तल पर लेने की ज़रूरत नहीं है। ये जो कुछ हो रहा है ये एक व्यापक सामाजिक घटना है और अगर ऐसा हो रहा है तो समाज इसका दुष्परिणाम भी भुगतेगा-ही-भुगतेगा। जिस समाज में ज्ञान की कद्र नहीं रह जाती, वो समाज आगे नहीं जा सकता। जिस समाज में टीचर्स , डॉक्टर्स , प्रोफेसर्स , रिसर्चर्स इनसे ज़्यादा सम्मान और प्रसिद्धि यूँ ही बावले लड़कों को मिलने लग जाती है, वो समाज ख़ुद ही भुगतेगा। आपको अगर अपने क्षेत्र से प्रेम है, आपने अपनी एमबीबीएस, एमडी जो भी आपने करी है अगर निष्ठा के साथ करी है, तो आप अपने काम में लगे रहिए और सजग होकर, सचेतन होकर देखते रहिए आगे-आगे होता है क्या।

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