गॉसिप ही ज्ञान है || (2021)

October 30, 2021 | आचार्य प्रशांत

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपकी किताब 'कर्म' खरीदने मैं नोएडा के एक बुकस्टोर गया, तो वहाँ के मैनेजर से बात होने लगी। तो बातचीत में एक-दो चीज़ें निकल कर आई। पहली, पिछले पाँच-सात सालों में किताबों की कुछ कैटेगिरी (श्रेणी) ही गायब हो गई है बुकस्टोर से, फिलोसॉफी (दर्शनशास्त्र) और स्प्रिचुएलिटी सेक्शन (आध्यात्मिक खण्ड) एकदम पतला हो गया है। और दूसरी चीज़ ये निकल कर आई कि ज़्यादा जो आजकल किताबें बिक रही हैं, वो लाइट वेट (हल्की-फुल्की) हैं, मनोरंजन, एंटरटेनमेंट की दुनिया से हैं। मैं लम्बे समय से किताबें पढ़ता हूँ, और आज से तीस-चालीस साल पहले ऐसा नहीं होता था। बुकस्टोर मंदिर जैसा होता था और बुकस्टोर में जाओ तो वहाँ पर अध्यात्म की, दर्शन की, तमाम तरह के अच्छे साहित्य की पुस्तकें रहती थीं, अभी वो सब नहीं हैं।

आचार्य प्रशांत: हाँ, बात बिलकुल ठीक है। अभी आप अगर किताबों की दुनिया में देखेंगे तो वहाँ हालत ये है कि वहाँ लेखक को नहीं पढ़ा जाता। वहाँ पहले आपको एक सेलिब्रिटी होना चाहिए, वो भी अधिकांशतः मनोरंजन की ही दुनिया से, जिसमें खेल और सिनेमा वगैरह आ गए, और फ़िर आपकी किताब छपेगी तो वो किताब पहुँच जाती है बुकस्टोर पर।

और आप बुकस्टोर पर जाएँगे तो वहाँ पर आपको तस्वीरें दिखाई देंगी उन लोगों की जिनकी किताबें आजकल बिक रही हैं, वहाँ तस्वीरें आपको लेखकों की नहीं दिखाई देंगी। आज के अच्छे लेखक कौन हैं, इसका तो बहुत कम लोगों को नाम भी पता हो।


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आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।

आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें

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