ह्रदय में कृपा, युद्ध में निष्ठुरता || श्रीदुर्गासप्तशती पर (2021)

January 9, 2022 | आचार्य प्रशांत

आचार्य प्रशांत: दूसरे चरित्र का जो अंतिम अध्याय है, चतुर्थ अध्याय, उसे मैं पढ़े देता हूँ। पहले सुन लें, फिर उस पर चर्चा करेंगे।

"अत्यंत पराक्रमी दुरात्मा महिषासुर तथा उसकी दैत्य सेना के देवी के हाथ से मारे जाने पर इंद्र आदि देवता प्रणाम के लिए गर्दन तथा कंधे झुकाकर उन भगवती दुर्गा का उत्तम वचनों द्वारा स्तवन करने लगे। उस समय उनके सुन्दर अंगों में अत्यंत हर्ष के कारण रोमांच हो आया था। देवता बोले, ‘सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरुप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत को व्याप्त कर रख है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हम लोगों का कल्याण करें’।”

“जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान शेषनाग, ब्रह्मा जी तथा महादेव जी भी समर्थ नहीं हैं। वे भगवती चंडिका सम्पूर्ण जगत का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें। जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मी रूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रता रूप से, शुद्ध अंतःकरण वाले पुरुषों के हृदय में बुद्धि रूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धा रूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जा रूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं।”


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आचार्य प्रशांत एक लेखक, वेदांत मर्मज्ञ, एवं प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक हैं। बेलगाम उपभोगतावाद, बढ़ती व्यापारिकता और आध्यात्मिकता के निरन्तर पतन के बीच, आचार्य प्रशांत 10,000 से अधिक वीडिओज़ के ज़रिए एक नायाब आध्यात्मिक क्रांति कर रहे हैं।

आई.आई.टी. दिल्ली एवं आई.आई.एम अहमदाबाद के अलमनस आचार्य प्रशांत, एक पूर्व सिविल सेवा अधिकारी भी रह चुके हैं। अधिक जानें

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