Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
क्या है जो कभी नहीं बदलता? || अष्टावक्र गीता पर
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
8 min
469 reads

न दूरं न च सङ्कोचाल्लब्धमेवात्मनः पदम्। निर्विकल्पं निरायासं निर्विकारं निरञ्जनम्॥

आत्मा का स्वरुप न दूर है, न निकट। वह तो प्राप्त ही है, तुम स्वयं ही हो। उसमें न विकल्प है, न प्रयत्न है, न प्रकार है और न मल।

~ अष्टावक्र गीता, अध्याय १८, श्लोक ५

आचार्य प्रशांत: "आत्मा का स्वरुप न दूर है, न निकट। वह तो प्राप्त ही है, तुम स्वयं ही हो। उसमें न विकल्प है, न प्रयत्न है, न प्रकार है और न मल।"

कुछ नहीं कहेंगे कि क्या है, यही कहते रहेंगे कि क्या नहीं है। जो कुछ भी तुम्हें बुरा लगता है, वही नहीं है। और मैं तुम्हें बता दूँ, तुम्हें सब कुछ बुरा ही लगता है। कुछ बता दो जो अच्छा लगता हो।

जो कुछ भी तुम्हें अच्छा लगा है न, वो किसी और वस्तु की तुलना में लगा है जो ज़्यादा बुरी लगती है। हमें जो कुछ भी लगता है, या तो बुरा लगता है या बहुत बुरा लगता है। जो हमें बहुत बुरे की तुलना में कम बुरा लगता है, उसे हम कभी-कभार अच्छा बोल देते हैं। अगर तुम्हें वास्तव में कुछ अच्छा लगता तो कुछ तो होता तुम्हारे जीवन में जो सदैव अच्छा बना रहता। ज़रा एक चीज़ ऐसी बता देना जो तुम्हारे जीवन में सदैव अच्छी बनी रही है? तुमने तो भगवान को भी कभी न कभी गाली ज़रूर दी होगी।

कुछ भी ऐसा है जो सदा अच्छा बना रहा है? कोई बैठा है यहाँ पर जिसने ईश्वर को कभी दोषी न ठहराया हो, भाग्य को कभी-न-कभी कोसा न हो? कभी-न-कभी कहा न हो कि “हे भगवान! क्या कर रहा है? मुझे ही क्यों चुना इस सारे दंड के लिए?” कोई है ऐसा यहाँ पर जिसे अच्छे-से-अच्छा भी कभी बुरा न लगा हो?

इसका अर्थ जान लो साफ़-साफ़; हमारे लिए कुछ अच्छा नहीं, कुछ बुरा नहीं, सब तुलनात्मक है। द्वैत का मतलब ही यही है कि कुछ भी पूर्ण न होगा, आत्यंतिक न होगा, मुक्त न होगा। जो होगा, बस तुलनात्मक होगा। एब्सोल्यूट (पूर्ण) कुछ नहीं होगा, सब रिलेटिव (तुलनात्मक) होगा।

तो जो मिले, उसी को जान लेना कि ये ही दुःख देता है। जो दिखाई दे, जो मन पर छाए, उसी को जान लेना कि यही दुःख है। अभी सुख लग रहा है क्योंकि कम दुःख है, अभी सुख लग रहा है क्योंकि बाकी सब बहुत दुःख देते हैं, ये कम दुःख देता है। ये देखा है कि नहीं देखा है?

हमारे यहाँ पर हाथी, मतलब सिद्धार्थ है। उसकी पीठ में बहुत दर्द है। तो आज मैंने पूछा, मैंने कहा, "हाथी, पीठ का हालचाल बता दे।"

उसने कहा, "पीठ बिलकुल ठीक है। बस कभी-कभार दर्द का पता चलता है।"

कारण जानते हैं? वो बेचारा अभी बुखार से त्रस्त है। जब बुखार हावी हो जाता है तो पीठ ठीक लगने लगती है। पीठ भी आज-कल उसे दुःख सिर्फ़ तब देती होगी जब बुखार ज़रा कम हो जाता है।

हम दुखों से मुक्ति का एक ही तरीका जानते हैं – कोई और बड़ा दुःख पैदा कर लो। शराब के पीछे और क्या तर्क होता है? बहुत सारे नशे हैं जो परेशान किए हुए हैं। उन नशों से छूटना है तो कोई बड़ा नशा ले आओ, वो सारे नशे भूल जाएँगे।

तो ऐसा नहीं है कि हाथी भाई की पीठ ठीक हो गई है। पीठ दुःख देगी पुनः। वास्तव में जो भी कुछ है, जब तक वो है, वो दुःख मात्र ही है। जैसे-जैसे आप एक दुःख से मुक्त होते जाएँगे, उससे सूक्ष्म दुःख प्रस्तुत होता जाएगा। जो पहले दुःख नहीं लगता था, वो अब दुःख लगने लगेगा क्योंकि बड़ा वाला दुःख चला गया तो अब बड़ा वाला दुःख सामने आएगा।

जब तक आपके पास पैसा नहीं था, तब तक आपको ये बुरा ही नहीं लगता था कि आपके घर का पेंट कहीं-कहीं उधड़ा हुआ है। तब ज़्यादा बड़ा दुःख था कि अभी तो पैसा ही नहीं है। अभी तो हो सकता है खाने-पीने में ही दिक़्क़त आ जाती हो। अब ज़रा पैसा आ गया तो अब घर में ये जो चितकबरे धब्बे हैं, ये बड़ा दुःख देंगे।

बड़े दुखों से मुक्त होओगे, नीचे वाले दुःख उत्पन्न होते जाएँगे, होते जाएँगे, होते जाएँगे। जो कुछ भी अच्छा लगता था, वो भी अंततः दुःख रूप में ही सामने आना है। कुछ ऐसा है नहीं जो हो और दुःख न हो। अष्टावक्र सबको कहते हैं, न मल, न ये, न वो। तुम उसमें सब जोड़ लो, न मल, न तल, न कल, न आज।

"वह तो प्राप्त ही है, वह तुम ही हो।" ये भी कह करके वो ये नहीं कह रहे कि तुम्हारे हाथ में है। वो ये कह रहे हैं कि तुम तो जब भी देखते हो तो उन्हीं चीज़ों को देखते हो जो तुम्हें प्राप्त नहीं हैं। कुछ ऐसा है जो तुम्हें लगता है तुम्हें प्राप्त है? हमारे पास तो जो कुछ है, उसमें हमेशा अप्राप्ति छुपी ही रहती है। कभी पूरा भरोसा होता है कि कुछ प्राप्त हो गया? कुछ ऐसा है तुम्हारे जीवन में जो एक फ़ोन कॉल तुमसे छीन न ले? कुछ है जिस पर इतना पक्का भरोसा हो कि कोई भी आ करके कोई ख़बर देता रहे, कोई बात सुझाता रहे, कोई तर्क देता रहे, पर तुम अडिग रहो कि, "नहीं, ये तो छिन नहीं सकता"?

जो कुछ भी तुम्हें प्राप्त है, वो कभी भी अप्राप्ति में बदल सकता है। कोई बता सकता है कि घर जल गया, कोई बता सकता है कि बीवी भाग गई, कोई बता सकता है कि पद छिन गया, कोई बता सकता है कि अनर्थ हो गया। सब कुछ ख़त्म हो सकता है। तो इसलिए अष्टावक्र को कहना पड़ता है कि आत्मा वो जो प्राप्त ही है, अर्थात् जो छिन नहीं सकती। हम तो लगातार छिनने के भय में ही जीते हैं।

"न दूर है, न निकट।" काटते चलो, न ये है, न वो है। हमारे लिए दूरी भी दुःख है और निकटता भी दुःख है। प्रेयसी की दूरी दुःख है, पत्नी की निकटता दुःख है। जो है, सो दुःख है। इसीलिए जब भी कभी उस परम वस्तु का परिचय दिया जाएगा तो उस सबको हटाकर दिया जाएगा जो हमारे मन में घूमता रहता है, क्योंकि जो हमारे मन में घूमता रहता है, वो सब हमारे लिए दुःख है। और जो परम वस्तु है, जो स्वभाव है, वहाँ दुःख नहीं है। तो काटना पड़ेगा, निषेध करना पड़ेगा।

प्रश्नकर्ता: वो नशे वाली बात नहीं समझ आयी जो दूसरे नशे की बात कर रहे थे।

आचार्य: जो भी कुछ आपको दुःख दे रहा है, वो क्या है?

नशे की परिभाषा क्या होती है? - जो आपको सत्य से दूर कर दे, जो आपको होश से दूर कर दे।

आप होश में होते तो दुःख पाते? पर आप दुःख में हो, इसका मतलब है कि आप पहले ही बेहोश हो, नशे में हो। दुःख का अर्थ ही है बेहोशी। और आप दुःख में होते हो तो क्या करते हो? एक जाम अंदर, दो जाम अंदर। ये आप कर रहे हो छोटे नशे से निजात पाने का उपाय। और क्या उपाय खोजा है आपने? बड़ा नशा, और नशा, और नशा, और बड़ा नशा।

दो व्यक्ति हों, दोनों पचास-हज़ार लेकर घूम रहे हों तो देख लीजिएगा सुख-दुःख की हक़ीक़त। एक रो रहा होगा, एक हँस रहा होगा। एक हँस रहा है, वो इसलिए हँस रहा है क्योंकि उसे कुछ मिलना नहीं था लेकिन पचास-हज़ार मिले गए। और जो रो रहा है, वो क्यों रो रहा है? उसे लाख मिलना था लेकिन पचास ही मिला। देख रहे हैं कितने तुलनात्मक होते हैं ये?

अगर पचास में सुख होता तो दोनों को मिलता, क्योंकि दोनों के पास कितना है? पचास। अगर पचास में दुःख मिलता तो दोनों को मिलता, क्योंकि दोनों के पास कितना है? पचास। पर पचास दोनों के पास है; एक के पास सुख है, एक के पास दुःख है। बात ज़ाहिर है कि मामला कुछ और है।

इसको अपने साथ रखियेगा लगातार। कुछ करियेगा नहीं, बस साथ रखियेगा। ये थोड़ी अटपटी बात लगेगी क्योंकि जब भी मैं कहूँ कि साथ रखियेगा, तो आपको लगता है कि, "साथ रखकर क्या करना है! इनका अर्थ करें? इनकी तुलना करें? इनकी विवेचना करें?" मैं कह रहा हूँ कि कुछ नहीं करना है। बस इनके साथ रहना है, रहना, स्टे , *होल्ड*।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles