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उड़ाना है तो उड़ाइए, पर पहले ज़रा कमाइए (उधार का फ़ेमिनिज़्म?) || (2021)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: मैं घूमती-फिरती हूँ, टूरिज़्म (पयर्टन) करती हूँ, अच्छे कपड़ों और ज्वेलरी (गहने) का शौक है मुझे। शॉपिंग (खरीदारी) करती हूँ। मुझे इस बात पर शर्मसार क्यों होना चाहिए? मेरे हसबैंड (पति) का बड़ा बिज़नेस (व्यवसाय) है। पेंटिंग , ट्रैवलिंग , ब्लॉगिंग मेरी हॉबी है और फ़ेमिनिज़्म मेरी आईडियोलॉजी (विचारधारा)। मैं आज की बोल्ड , कॉन्फिडेंट और आज़ाद लेडी (नारी) हूँ तो फिर मुझसे लोगों की क्यों जलती है?

आचार्य प्रशांत: बहुत अच्छी बात है आज़ाद ख्याल होना। आप कह रही हैं आप बोल्ड हैं, कॉन्फिडेंट हैं बहुत अच्छी बात है। आप शॉपिंग करती हैं, टूरिज़्म करती हैं। आपको गहनों का, अच्छे कपड़ों का शौक है। आप पूछ रही हैं कि "इसमें कोई गुनाह हो गया क्या कि मुझे शर्मसार होना चाहिए?" नहीं, बिलकुल कोई गुनाह नहीं हो गया और आपकी दिलचस्पी है पेंटिंग (चित्रकारी) में, ट्रेवलिंग (घूमने) में, ब्लॉगिंग में बढ़िया बात है और विचारधारा से आप फ़ेमिनिस्ट हैं। सब ठीक है, बस आप जो कुछ भी कर रही हैं अपने सामर्थ्य पर करिएगा।

आपने कहा है न, "मैं आज की बोल्ड , कॉन्फिडेंट , आज़ाद लेडी हूँ।" आप पूछ रही हैं कि "तो फिर लोगों को समस्या क्या है? लोगों को क्या ईर्ष्या होती है?"

देखिए, लोगों को क्या ईर्ष्या हो रही है या लोग क्या कह रहे हैं, हो सकता है वो बात बहुत महत्व की ना हो लेकिन ये बात निश्चित रूप से बहुत महत्व की है कि आप जीवन में स्वतंत्र रहें ज़रा। स्वतंत्रता का मतलब यही नहीं होता कि आप फ्लाइट लेकर के एक जगह से दूसरी जगह चली गई, मन करा उड़ गए, जो मन करा वो ख़रीद लिया, जो मन करा वो पहन लिया, जब मन करा कुछ करा, जब मन कुछ नहीं करा तो आराम करा। स्वतंत्रता का मतलब ये नहीं होता।

आप कह रही हैं कि, "मैं बोल्ड हूँ, कॉन्फिडेंट हूँ, फ्री हूँ", तो आज़ाद होने का असली मतलब होता है कि आपको कम-से-कम अपना खर्चा खुद निकालना चाहिए। आपने बिलकुल साफ लिख दिया है कि हसबैंड का बड़ा बिज़नेस है। अच्छी बात है, आपका क्या है? आप कहाँ से पैसा लाती हैं अपनी यात्राओं के लिए? अपनी शॉपिंग के लिए? अपनी हॉबीज़ के लिए?

आप आज़ादी से संबंधित बहुत ब्लॉगिंग कर लें, ब्लॉगिंग आपकी हॉबी है उससे आप आज़ाद नहीं हो जाएँगी। आप बहुत आज़ादी के साथ एक शहर से दूसरे शहर यात्रा कर लें उससे भी आप आज़ाद नहीं हो जाएँगी। अगर ये सबकुछ पति के पैसों पर हो रहा है तो इससे बड़ी गुलामी क्या हो सकती है? और ये अभी मैं बस मान रहा हूँ, क्योंकि आपने पति के बिज़नेस के बारे में तो लिखा है, अपनी आमदनी के स्रोत के बारे में आपने कुछ कहा नहीं और जिस तरिके की आपने अपनी दिनचर्या बताई है और अपने शौक बताए हैं उससे मैं ये अनुमान लगा रहा हूँ कि शायद आमदनी का आपका अपना कोई, कम-से-कम नियमित और बड़ा, साधन तो नहीं है। ये जो कुछ भी आप कर रही हैं ये कार्यक्रम चल पति के पैसों पर रहा है। ये असली समस्या है।

आपने जो समस्या पूछी है वो बहुत छोटी चीज़ है। आप पूछ रही हैं कि "लोगों को जलन क्यों हो रही है? मैं अगर खर्च करती हूँ तो इसमें मैं शर्मिंदा क्यों होऊँ?" ये सब बातें बाद की हैं, ये समस्याएँ ही छोटी हैं। जो असली मुद्दा है वो दूसरा है। वो यही है कि ये जो कॉन्फिडेंस आप दर्शा रही हैं, आपने कहा कि आप बोल्ड हैं, कॉन्फिडेंट हैं", वो कॉन्फिडेंस आ कहाँ से रहा है? क्योंकि जिसकी जेब में दो रुपये ना हो, उसके लिए बड़ा मुश्किल होता है कॉन्फिडेंट होना। आप कॉन्फिडेंट हैं, बहुत सुंदर बात है ये। लेकिन वो कॉन्फिडेंस असली होना चाहिए, आत्मिक होना चाहिए, अपना होना चाहिए। बैसाखियों पर कौन-सा कॉन्फिडेंस स्थाई होने वाला है? दूसरे के सहारे पर चलकर के आपमें कैसे अपने प्रति बड़ा विश्वास बना रहेगा। और ये जो स्थिति है ये सिर्फ़ आपकी नहीं है, ये बहुत महिलाओं की है।

एक छोर पर तो वो महिलाएँ हैं जो बहुत मेहनत-मशक्कत करती हैं, मजदूरी करती हैं। इधर बगल में ही कुछ काम चल रहा है, मकान बन रहा है तो उसमें मजदूर महिलाएँ आती हैं और वो अपना इन दिनों की धूप में भी दिनभर लगी रहती हैं, काम करती रहती हैं। बारिश भी हो गई बीच में और उसमें भी अपना कर ही रही हैं और उनकी उनको दिहाड़ी मिल जाती है। ऐसी महिलाओं के साथ मुझे बड़ी सहानुभूति है, संवेदना है। सबकुछ करके उनकी मदद की जानी चाहिए, उन्हें आगे बढ़ाया जाना चाहिए। पर स्थितियों ने उनका साथ नहीं दे रखा है, अतीत ने उनका साथ नहीं दे रखा है तो उनकी जितनी मदद की जानी चाहिए उतनी कम है।

और जो दूसरा छोर है उस पर बिलकुल ही दूसरे तरह का मन रखने वाली और बिलकुल दूसरी स्थितियों वाली महिलाएँ हैं। ये वो महिलाएँ हैं जिन्हें बिलकुल मेहनत-मशक्कत नहीं करनी पड़ती। 'पति का बड़ा बिज़नेस है' जैसा आपने लिख दिया। इस छोर से मुझे थोड़ी समस्या है।

आप किसी बड़ी शॉपिंग मॉल में जाइए, वहाँ पर आप आधे से ज़्यादा ख़रीदारी करने वालों में महिलाओं को पाएँगे। बहुत अच्छी बात है। दुनिया में इतनी चीज़ें बन रही हैं वो इसीलिए बन रही हैं कि भाई लोग खरीदें लेकिन आप किसके पैसे से खरीद रही हैं? ये कैसे हो जा रहा है कि कमाने वालों में तो अस्सी-नब्बे प्रतिशत तो पुरुष हैं।

आप गुडगाँव-बेंगलुरु के किसी बड़े दफ्तर में चले जाइए सुबह-सुबह और वहाँ जो लोग दरवाज़े से अंदर जा रहे हो—मान लीजिए किसी एम.एन.सी (बहुराष्ट्रीय कंपनी) का ऑफिस है—वहाँ जो लोग अंदर जा रहे हैं, वहाँ गिनती कर लीजिए कितनी स्त्रियाँ हैं, कितने पुरुष हैं। तो संभावना यही है कि अस्सी-नब्बे प्रतिशत आपको पुरुष मिलेंगे दफ्तरों में काम करते हुए। और फिर आप उसी ऑफिस के निकट किसी शॉपिंग मॉल में चले जाइए जहाँ फॉरेन ब्रांड्स हों, महँगी चीज़ें हों तमाम, और वहाँ गिनती कर लीजिए कि अंदर जाने वालों में कितने पुरुष हैं और कितनी महिलाएँ हैं और बड़े ताज्जुब की बात सामने आएगी कि उसमें अंदर जाने वालों में अधिकांश महिलाएँ हैं।

तो ये हो कैसे जा रहा है कि कमाने वाला काम पुरुष कर रहे हैं और खर्च करने वाला काम महिलाएँ कर रही हैं? और याद रखिए मैं ये बात सब महिलाओं के लिए नहीं बोल रहा। ये बात मैं महिलाओं के एक छोटे वर्ग के लिए बोल रहा हूँ जिसमें आप (प्रश्नकर्ता) आती हैं। नहीं तो थोड़ी देर पहले मैंने उस मजदूर महिला का भी ज़िक्र किया था जो बिलकुल खून-पसीना एक करके किसी तरीके से अपनी रोटी कमाती है, अपने बच्चे का पेट पालती है। मैं अभी उसकी बात नहीं कर रहा हूँ।

तो ये चीज़ कुछ ठीक नहीं है। ये उधार की आज़ादी है, ये ग़ुलामी के गहने हैं इनसे आपको कोई सुख नहीं मिल जाने वाला है। वास्तव में आपको जो समस्या हो रही है न, कि लोग आपसे जलते क्यों हैं, वो समस्या भी इसीलिए हो रही है क्योंकि लोगों की नज़रें जो ताने कसती हैं और लोगों की ज़ुबान जो व्यंग्य करती हैं उनमें कहीं-न-कहीं आपको लगता है कि कुछ सच्चाई है।

आप कह रही है, "मैं शर्मसार क्यों होऊँ?" बिलकुल कोई ज़रूरत ही नहीं है। पर ये मुद्दा भी आपके ज़हन में आया ही क्यों शर्म का? क्योंकि कहीं-न-कहीं आप जिस तरीके से जी रही हैं उसको लेकर के आपके मन में गौरव नहीं है। गौरव होता तो शर्म की बात आपके मन में आती ही नहीं। और गौरव इसीलिए नहीं है।

होगा पति का बहुत बड़ा व्यापार। पति का व्यापार है। मैं मान रहा हूँ, लगभग आपके जितनी उम्र होगी पति की भी। ऐसे कैसे हो गया कि एक इंसान बड़ा व्यापार खड़ा कर ले गया और दूसरा इंसान कुछ नहीं कर रहा है बल्कि उस व्यापार से आए हुए पैसे से इधर-उधर जाकर के खरीदारियाँ कर रहा है, यात्राएँ कर रहा है।

आप कह रही हैं फ़ेमिनिज़्म आपकी आईडियोलॉजी है। अगर फ़ेमिनिज़्म का मतलब होता है नारी मुक्ति और नारी कल्याण तो फ़ेमिनिज़्म की पहली शर्त तो यही होनी चाहिए न कि अपनी कमाई रोटी खाओ। ये कौन-सा फ़ेमिनिज़्म है जो सब मस्क्यूलिन (पुरुष) लोगों की आमदनी पर पलता है? कि आप कहें कि, "मैं फेमिनिस्ट हूँ लेकिन पैसा सारा मेल (पुरूष) से आएगा।" ये फ़ेमिनिज़्म हमें तो कुछ समझ में नहीं आया।

आप बिलकुल ब्लॉगिंग करिए, आप ट्रैवलिंग करिए, पेंटिंग करिए लेकिन आप किसी भी तरह की कला में प्राण तभी फूँक पाएँगी जब वो कला आपके जीवन संघर्षों से निकली हो। आपके जीवन में अगर कुछ संघर्ष नहीं, आपको क्रेडिट कार्ड उठाना है पति का और जाकर के शॉपिंग करने में जुट जाना है। वो जो रुपया खर्च कर रही हैं या वो जो डॉलर आप खर्च कर रही हैं आपको पता भी नहीं है कि वो कितनी मेहनत से आया है तो आपकी पेंटिंग में या आपकी ब्लॉगिंग में जान नहीं आएगी।

देखिए मैं कोई पैसे का पुजारी नहीं हूँ। मैं नहीं कह रहा कि हर इंसान को लाखों कमाने ही चाहिए बिलकुल ज़रूरी है, लेकिन मैं इतना हमेशा कहा करता हूँ कि 'माँगन मरण समान है।' पुराने, बड़े लोग बोल गए हैं। क्या? "माँगन मरण समान है।" इतना तो कमा लो कि हाथ ना फैलाना पड़े, माँगना ना पड़े। इतना तो कमा लो कि तुम्हारे बदन पर जो कपड़ा है वो दूसरे के पैसे का ना हो। उसके बाद बात करना फ़ेमिनिज़्म वगैरह की। उसके बाद कहिएगा कि, "मैं बोल्ड , कॉन्फिडेंट और आज़ाद लेडी हूँ।"

अभी तो आप बस पराश्रित हैं, डिपेंडेंट * । कैसा लग रहा है सुनने में? * डिपेंडेंट ! आपने अपनी उम्र नहीं लिखी है पर मुझे लग रहा है आप तीस-चालीस बरस की तो होंगी। तीस-चालीस बरस का एक व्यक्ति आश्रित है, डिपेंडेंट है और इसलिए नहीं कि वो बीमार है, इसलिए नहीं कि वो अनपढ़ है, इसलिए क्योंकि उसके पति से उसको मुफ्त के पैसे मिले ही जा रहे हैं, मिले ही जा रहे हैं। ऐसे नहीं चलेगा।

मैं माफी चाहता हूँ अगर मैंने जो बात बोली वो कटुता के साथ बोल दी। आमतौर पर महिलाओं को कम ही आदत होती है कटु शब्द झेल पाने की। और अगर उच्च वर्ग की महिला है तब तो उसके लिए और मुश्किल हो जाता है कि उसको कोई थोड़ी कड़वी बात बोल दे लेकिन लगातार ग़लत जीवन जिये जाने से तो बेहतर है कि आप एक मर्तबा मेरी कड़वी बात ही सुन लें।

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