Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
भारत क्या है? भारतीय कौन? || आचार्य प्रशांत (2020)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
12 min
119 reads

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम।

हम लोगों का देश के प्रति जो लगाव होता है, जो प्रेम होता है, और जैसा कि हम सब कहते भी हैं कि हमारा देश महान है, मुझे अपने देश के लिए ये करना है, वो करना है—सर्वप्रथम, आख़िर यह देश है क्या?

क्या हमारा देश, भारत, एक भौगोलिक क्षेत्रफल है, या 'भारत' मतलब कुछ और भी है? आख़िर ये भारत है क्या, मुझे समझाने की कृपा करें।

आचार्य प्रशांत: भारत क्या है ये इसपर निर्भर करता है कि - तुम क्या हो। तुम अगर एक बंदर भर हो, तो भारत एक जंगल भर है; तुम मवेशी हो, तो भारत चारागाह है; तुम व्यक्ति हो अगर लेकिन राजनीति से भरे हुए, तो भारत एक राजनैतिक इकाई है, राज्यों का, प्रदेशों का संघ है। देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है भारत। लेकिन अगर शरीर होकर देख रहे हो भारत को, भारत तुम्हारी दृष्टि में विश्व के मानचित्र पर खिंची हुई कुछ लकीरों का नाम है, तो फिर ये बोलने का तुम्हें कोई हक नहीं है कि - "भारत महान है।"

लकीरें महान कैसे हो गईं? और लकीरें तो बदलती रहती हैं। भारत की जो राजनीतिक स्थिति आज है, वो तो बड़ी ताज़ी-ताज़ी है, १९४७ के बाद की है। ७० साल दुनिया के इतिहास में कुछ नहीं होते, पालक झपकने बराबर होते हैं। थोड़ा पीछे जाओगे तो इस राजनैतिक नक़्शे को लगातार बदलता हुए पाओगे, ४७ के बाद भी तो बदला है। गोवा, सिक्किम, १९४७ में तो ये थे क्या? उसमें कुछ विशेष महानता नहीं।

एक ऐसे नक़्शे में, जिसको इंसान ने ही खींचा है और इंसान की ही करतूतों से वो बदल भी जाता है, कितनी महानता हो सकती है? हमारा खींचा हुआ नक़्शा है, उसमें उतनी ही महानता होगी ना जितनी हम में है - हमारी ही तो की हुई चीज़ है। तो फिर इस बात का क्या अर्थ है कि - भारत महान है?

इसको ऐसे समझना होगा कि - जो महान है वो तो महान ही है, अगर 'उस' से जुड़े हो तुम, और वही बन गया तुम्हारी राष्ट्र की परिभाषा। तो फिर निसंदेह भारत महान है।

नहीं समझ में आया होगा, बताता हूँ।

कहीं किसी ऐसी बात से शुरू करते हैं जो सब आसानी से स्वीकार कर लेंगे। कहते हो ना, सत्यम शिवम सुंदरम, हाँ? ठीक है? मानते हो ना कि सच ऊँचा है? और जो सच है, अगर वही शिव है, तो शिव भी ऊँचा है? और ये भी मानते हो कि उसी में सौंदर्य है, सौंदर्य में भी ऊँचाई है? तो भारत की महानता सत्य में है।

भारत महान है, अगर जो अपनेआप को भारतवासी कहता हो, वो सच की ही तरफ़ खड़ा होता है, चाहे जो कीमत देना पड़ती हो, झूठ की तरफ़ नहीं। भारत महान है, अगर जो अपनेआप को 'भारतवासी' कहता हो, 'भारतीय' कहता हो, वो शिवत्व का पुजारी है; माया का नहीं, अंधकार का नहीं, अज्ञान का नहीं। और भारत महान है, अगर जो अपनेआप को 'भारतीय' कहता हो, वो सौंदर्य का रचयिता है, विकृति और कुरूपता का नहीं।

यदि ऐसा है तो भारत महान है, अन्यथा नक़्शा तो नक़्शा होता है, ज़मीन तो ज़मीन होती है।

और ये कहने में कोई लाभ नहीं कि एक ज़मीन दूसरी ज़मीन से श्रेष्ठ होती है। ये बड़ी विचित्र बात होगी अगर आप ऐसा दावा करेंगे।

हाँ, कोई किसान ज़रूर ऐसा दावा कर सकता है कि फलानी ज़मीन श्रेष्ठ है, पर उसके दावे का कुल आधार फसल की उपज होगी। इस नाते तो महानता नहीं नापी जा सकती ना? और भी जो आप बातें आमतौर पर सुनते हैं कि - "हमारे यहाँ पवित्र नदियाँ हैं और पर्वत-राज हिमालय हैं, इस नाते भारत महान है" —ये सब बातें भी देखिए बहुत दूर तक नहीं जातीं; दुनिया में बहुत पर्वत हैं, बहुत चोटियाँ हैं। निसंदेह हिमालय अद्वितीय हैं, लेकिन दूसरे पर्वतों की भी शोभा निराली है। नदियों में निश्चित रूप से गंगा हों, नर्मदा हों, यमुना हों, इनका अपना तेज है, अपनी महिमा है, लेकिन दुनिया में और भी बड़ी-बड़ी नदियाँ हैं—अमेज़न है, मिसिसिपी है, नाइल है—उनका भी अपना जलवा है। तो बाकी सब तर्क जो हम देते हैं भारत की महानता के पक्ष में, वो तर्क बहुत दूर तक नहीं जाएँगे।

भारत महान सिर्फ़ तभी है जब भारतीयों में महानता की कद्र हो, और इसी नाते इतिहास में भारत की महानता रही भी है।

सच का पालना रहा है भारत, इसलिए महान रहा है, और कोई वजह नहीं; बाकी आप कितनी वजहें गिनते रहो।

कवियों ने बहुत वजहें बताई हैं। कवि कहते हैं "देखो, हिमालय मुकुट की तरह है और सागर हमारे चरण पखारता है, इसलिए भारत महान है।" कहते हैं, "ऊपर जाओ देखो, कश्मीर की तरफ़ जाओ तो वहाँ मुकुट की तरह हिमालय है, और नीचे आओ दक्षिण की तरफ़ तो वहाँ हमारे पाँव कौन धो रहा है? सागर। तो इसलिए भारत महान है।" ये सब कोई बात नहीं हुई, इस तरह की भौगोलिक रचनाएँ आपको और जगहों पर भी मिल जाएँगी।

कोई आकर के कहता है कि - "भारत में इतनी भाषाएँ हैं, इतनी बोलियाँ हैं, इतनी विविधताएँ हैं, इसलिए भारत महान है।" रूस जाकर देख लीजिए, चीन जाकर देख लीजिए, और भी जगहें हैं जहाँ क्षेत्रीय और भाषाई विविधता भारत जितनी ही है, भारत से ज़्यादा भी है। तो ये विविधता भी कोई बहुत महानता की बात नहीं हो गई। ये सब उच्च कोटि के लक्षण हैं। ये सब किसी भी जगह से संबंधित सद्गुण हैं, लेकिन महानता की बात नहीं है।

महानता तो सिर्फ़ एक ही चीज़ में होती है। और समझिए कि इतिहास में भारत को जिन्होंने भी महान माना और महान कहा, उन्होंने किस नाते भारत को वो सम्मान दिया!

जब सभ्यता, संस्कृति घुटनों पर ही चल रहे थे, तब भारत ने अस्तित्व को लेकर गहरे प्रश्न पूछने शुरू करे, इसलिए भारत महान है। ऋग्वेद का नासदीय-सूक्त याद है ना: "सृष्टि से पहले क्या था?”? बाकी दुनिया अभी ये भी नहीं पूछ रही थी कि - "सृष्टि माने क्या," और यहाँ कोई था, वो ये पूछ रहा है कि - "सृष्टि से पहले क्या था?" और उसके सवाल का ज़ोर देखिए, वो पूछता है, "जल भी था क्या? और सब कुछ कहाँ छिपा हुआ था जो आज आ गया है इतना सारा सामने? ये अचानक कहाँ से प्रकट हो गया? और अगर आज सामने आ गया है, तो पहले छिपा कहाँ था?” फिर यही श्लोक आगे कहता है कि - "ये बातें लगता है सिर्फ़ परमात्मा को पता होंगी," और आगे पूछता है - "लेकिन उसको भी पता हैं क्या?”

भारत इसलिए महान है!

जब बहुत आसान था डर के कारण, अज्ञान के कारण, विश्वास कर लेना—भारत ने सवाल उठाए। भारत जानना चाहता था, बोध की तरफ़ बड़ा गहरा झुकाव था, इसलिए भारत महान है। मानवता के जो ऊँचे-से-ऊँचे गुण हो सकते थे, वो भारतीयों ने दर्शाए, इसलिए भारत महान है।

और उतना ही महान है जिस हद तक वो गुण दर्शाए गए, जिस हद तक अवगुण दर्शाए, भारत महान नहीं है।

और फिर आइए वेदों के बाद वेदांत की ओर।

कुछ भी ऐसा नहीं है जिसके बारे में पूछा नहीं, जिस पर सवाल नहीं खड़ा करा। कुछ भी ऐसा नहीं जिस पर आँख मूंदकर विश्वास कर लिया। संवाद हो रहे हैं, बहसें हो रही हैं, वार्ताएँ हैं, बात-चीत हैं, शास्त्रार्थ हैं।

भारत जानना चाहता है, समझना चाहता है, किसी भी क़ीमत पर वो उलझे नहीं रहना चाहता। किसी भी क़ीमत पर वो अज्ञानी नहीं रहना चाहता। ये महानता है।

और फिर भगवद्गीता, और फिर महावीर, और फिर बुद्ध, कि ज़रा-सा वेदों की परंपरा धूमिल पड़ी नहीं कि भारतीय खड़े हो गए सुधार करने के लिए। ज़रा-सी विकृति आई नहीं, ज़रा-सा मामला भ्रष्ट हुआ नहीं, कि भारत के भीतर से ही लोग खड़े हो गए, आंदोलन खड़ा हो गया कि - "नहीं नहीं नहीं, सुधार करना है।"

और फिर सुधार करने जो आया था बौद्ध धर्म, वो ख़ुद जब अपने आप में मलिन और विकृत हो गया, तो आचार्य शंकर खड़े हो गए। बोले, "वेदांत को पुनर्जीवित करना है।" और ये सब कुछ किसी को मारपीट कर के नहीं किया जा रहा था; ये सब कुछ बस मानसिक शक्तियों के उपयोग से किया जा रहा था, बड़ी सफ़ाई से, बड़ी ईमानदारी से। और फिर ज्ञान की और बोध की ये जो परंपरा थी, यही आचार्य शंकर के जाते-जाते बस कुछ १०० साल बाद ही प्रेममार्ग में परिवर्तित हो गई। और प्रेम में फिर भारत जितनी गहराई से डूबा, उतना अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता।

इसलिए भारत महान है।

एक तरफ़ है उपनिषदों की और बौद्धों की बोध विषयक सामग्री, और फिर दूसरी तरफ़ है संतों के प्रेम भरे गीत। ये दोनों ही चीज़ें एक ही धरती पर हो जाएँ, बड़ी अनुपम बात है। और प्रेममार्ग भारत की धरती पर उस समय फलीभूत हो रहा था, जब राजनैतिक तौर पर ज़बरदस्त मार-काट मची हुई थी - मध्ययुगीन। राजा और बादशाह एक दूसरेे की रियासतों को तो काट ही रहे थे, अपने-अपने परिवारों तक को काट रहे थे। उस समय भारत की धरती पर प्रेम के अनगिनत फूल खिल रहे थे।

जो सच्चाई और प्रेम के प्रति झुकाव आध्यात्मिक तल पर देखने को मिलता है भारत में, वही वैज्ञानिक तल पर भी था, वही चिकित्सा के क्षेत्र में भी था। भारत यूँ ही थोड़े ही सोने की चिड़िया था। जंगल में ध्यान करने से या मंदिर में भजन करने से अर्थव्यवस्था की तरक़्क़ी नहीं हो जाती ना? और आर्थिक तौर पर भी अगर भारत विश्व का अग्रणी देश था, तो इसका अर्थ है कि उद्योग-धंधों में तरक़्क़ी थी, वैज्ञानिक आविष्कार हो रहे थे, गणित, विज्ञान, कलाएँ सब निखार पा रहे थे। पुरानी इमारतों को देखिए, पुराने मंदिरों को देखिए, जब तक शिल्पकला में और गणित में और इंजिनियरिंग में आप सिद्धस्थ ना हों, आप वो सारे निर्माण कर कैसे लेंगे जो यहाँ हुए?

ज़बरदस्त संगम: आध्यात्मिक तौर पर भी विश्व की राजधानी, बल्कि विश्वगुरु, और आर्थिक तौर पर भी। आर्थिक तौर पर भारत ने अगर ज़रा भी कम तरक़्क़ी की होती, तो दुनियाभर के लोग भारत की ओर आकर्षित होते ही क्यों? भले ही वो भारत को आर्थिक तौर पर लूटने के लिए ही आकर्षित हुए, पर अगर वो लूटने भी आए, तो इससे यही पता चलता है ना कि यहाँ लूटने के लिए बहुत कुछ था। और जो बहुत कुछ था, उसका निर्माण किया गया था, रचा गया था, उसे कमाया गया था।

ये एक विरल मेल है जो आज भी दुनिया में बहुत कम देखने को मिलता है कि - कोई लोग हैं जो आंतरिक रूप से आध्यात्मिक हैं, और भौतिक रूप से समृद्ध। भारत महान है क्योंकि भारत ने ये संगम फलीभूत करके दिखलाया था।

और जितने भी लोग यहाँ बैठे हैं, जो भारत की महानता में विश्वास रखते हैं और भारत को महानता के और नए-नए सोपानों पर देखना चाहते हैं, उनको ये समझना होगा कि महानता का वास्तविक अर्थ क्या होता है।

लड़ने-भिड़ने, नारेबाज़ी, हुड़दंग, शोर-शराबे, इनसे महानता नहीं आ जानी। महानता बड़ी मेहनत और साधना लेती है; आध्यात्मिक तौर पर साधना और भौतिक तौर पर श्रम, जज़्बा और जुनून छोटी चीज़ें नहीं हैं। पहाड़ पर चढ़कर नारेबाज़ी से काम नहीं चलेगा। अथक श्रम करना पड़ता है और लंबी साधना, फिर महानता उतरती है। भारत को महान अगर कहने में रुचि रखते हो, तो ख़ुद महान बनो, तुमसे ही है भारत की महानता। भारतीय अगर महान नहीं तो भारत महान कैसे हो सकता है, बताओ?

या हो सकता है? तो अगर भारत को कहना चाहते हो महान, तो ख़ुद महान होकर दिखाओ। बहुत महान लोग हुए हैं इस धरती पर। मैंने कहा - "धर्म का पालना रहा है भारत और विज्ञान का और गणित का और संगीत का भी पालना रहा है भारत, इसलिए भारत महान था, उन लोगों की बदौलत भारत महान था। आज भी वैसे लोग चाहिए। वैसे लोग होंगे तो भारत महान होगा, नहीं तो नहीं होगा। फिर ये तो कह लोगे कि इतिहास में पहले भारत महान था लेकिन ये नहीं कह पाओगे कि भारत आज भी महान है।

आज भारत को महान बनाना है तो अपने भीतर लोहा पैदा करो, और सच की तरफ़ निष्ठा पैदा करो।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles