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मैं इतनी सुंदर हूँ मैं क्या करूँ || (2021)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
14 min
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प्रश्नकर्ता: मैं दिखने में इतनी सुंदर हूँ मैं क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत: सबसे पहले तो यही समझ लो कि इतनी सुंदर हो नहीं। ये इतना विचित्र है कि क्या इस पर बोलें। सुंदर माने क्या? कैसे पता चलता है कि कोई सुंदर है?

श्रोतागण: दूसरे बोलते हैं।

आचार्य: हाँ, तो आकर्षक बोल सकते हो न, सुंदर तो नहीं बोल सकते। तो आप सुंदर हैं या नहीं इसका प्रमाण भी दूसरे ही दे देते हैं। आकर्षक लग रहे हो, लोग खिंच रहे हैं आपकी ओर तो आपने कह दिया कि आप सुंदर हैं। तो इससे तो यही पता चलता है कि आप दूसरों के किसी काम के हो, दूसरे आपकी ओर खिंच रहे हैं तो।

दूसरे किस काम के लिए आपकी ओर खिंच रहे हैं भाई? क्योंकि साफ-सुथरे शब्दों के पीछे हम असलियत छुपा ले जाते हैं। जब आप बोलते हो कि "मैं बड़ी सुंदर हूँ।" तो वास्तव में आप बोल क्या रही हो? आप ये बोल रही हो कि, "मैं जवान लड़कों के, पुरुषों के यौनसुख, सेक्सुअल प्लेज़र के लिए बड़े काम की चीज़ हूँ।" यही हुआ न, या और भी कुछ हुआ इससे अलग? आप सुंदर हो तो आपकी ओर लोग खिंच रहे हैं, यही हो रहा है न? इसीसे आप कहते हो न कि मैं सुंदर हूँ।

वो काहे के लिए खिंच रहे हैं? आपसे ज्ञान लेने के लिए आ रहे हैं? किस लिए आ रहे हैं आपके पास? आपसे वो अंतरराष्ट्रीय विषयों पर मंत्रणा करने आ रहे हैं? आपके साथ टेनिस खेलेंगे? वो जो लोग आपको आकर्षक मान रहे हैं वो किस लिए आपके पास आना चाहते हैं? आप हैं तो बड़ी सुंदर, वो किसलिए आपके पास आना चाहते हैं? बिलकुल ज़मीन की बात करो। हवा हवाई छोड़ो, कि वो रोमांस के लिए आना चाहते हैं, वो दिल की शांति के लिए आना चाहते हैं या उनको लगता है कि हमारी स्वर्ग में बनी हुई जोड़ी है इसलिए आना चाहते हैं। जोड़ी है, पोड़ी है वो किसलिए है?

तो ले दे करके आप ये बोल रहे हो कि, "मैं बड़ी उपयुक्त चीज़ हूँ, फिट चीज़ हूँ एक जेंडर को सेक्सुअल प्लेज़र देने के लिए।" ठीक है, तो इसमें आपको क्या मिला? इसमें आपको क्या मिला? आप अपने आपको उपलब्ध करा दीजिए, दूसरों को सेक्सुअल प्लेज़र (यौनसुख) आपसे मिल जाएगा। आप खड़े हो जाइए कि, "मेरे साथ जो करना है करो, तो दूसरों को तो आपसे कुछ दो कौड़ी का फायदा मिल जाएगा।" आपको क्या मिला?

तो जो पूछ रही हैं कि "मैं इतनी सुंदर हूँ, मैं क्या करूँ?" आप कुछ ऐसा करो जिसमें तुम्हारा फायदा हो। अभी तो जिसको तुम अपनी सुंदरता बोलती हो उससे बस दूसरों का फायदा है। तुम्हें क्या मिल रहा है?

कहेंगी "मुझे भी तो मिलता है।" तुम्हें क्या मिलता है? "ऐसे ही थोड़े ही मैं उनको सेक्सुअल प्लेज़र दे दूँगी? बकायदा कीमत लगती है।" हाँ, वो कीमत एकदम खोल कर नहीं लगाई जाती, नहीं तो जेल जाना पड़ेगा। वेश्यावृत्ति हो जाएगी, तो वो दबे छुपे लगाई जाती है। "मुझे तोहफ़े दे दो या मुझे तनख्वाह दे दो अपनी", ये सब चलता है। "काम कुछ नहीं करूँगी पर मुझे अपने घर में रख लो। तुम दिन भर काम करो मैं घर पर अपना मस्त बिस्तर में लेटूँगी, पाँच-सौ इंच के टीवी में घटिया सीरियल देखूँगी", तो ये सब कीमते हैं जो लगाई जाती हैं। मैं पूछ रहा हूँ तुम्हें ये सब मिल भी गया तो क्या मिल गया?

तो कुछ ऐसा करो न जिसमें तुम्हें कोई सार्थक चीज़ मिल जाए। नहीं तो सुंदरता कोई फ़ायदे की चीज़ नहीं है, सुंदरता एक बीमारी की तरह है। करीब-करीब एक लायबिलिटी (उत्तरदायित्व) की तरह है क्योंकि आपकी बोली लगनी शुरू हो जाती है न। आप सुंदर हैं, आकर्षक हैं तो बहुत सारे लोग आएँगे। वो तय कैसे करेंगे कि आपका सौंदर्य किसको मिलेगा? वो बोलियाँ लगाते हैं, बिडिंग होती है, ऑक्शन , और आप बिकते हो, बाकायादा बिकते हो। और जब बिक करके ही ज़िंदगी की सहूलियतें मिलने लग जाती हैं तो आपके पास फिर कोई कारण नहीं रह जाता ज़िंदगी में किसी ऊँची चीज़ को मेहनत करके हासिल करने का।

जब कुछ नहीं करना है, बिक करके ही बहुत कुछ पा लेना है तो काहे को ज्ञान बढ़ाएँ? काहे को कुशलता बढ़ाएँ? काहे को ज़िंदगी में कुछ भी हासिल करके दिखाएँ?

तो अजीब-सी स्थिति ये है कि एक साधारण दिखने वाली लड़की से शायद ज़्यादा मुश्किल है एक सुंदर लड़की की ज़िंदगी क्योंकि उसके खरीददार बहुत ज़्यादा हैं और उसे बहुत कुछ मिल जाएगा। और ये जो तुमको मिल जाएगा न अपनी सुंदरता के कारण, यही तुम्हारा नर्क है।

तुमको लगेगा तुमको ये यूँ ही मिल गया है, "मैं सुंदर हूँ न इसलिए मुझे ये सब मिल गया है।" वो तुम्हें यूँ ही नहीं मिल गया है। तुम्हारी चेतना की, तुम्हारी ज़िंदगी की जितनी ऊँची-से-ऊँची संभावनाएँ हो सकती थीं उनको आग लगा करके तुमको वो सोने का बिस्तर मिल गया, और गहने मिल गए हैं, और पाँच-सौ इंच का टीवी मिल गया है।

ज़िंदगी में जब आप चुनौतियों से लड़ते हो, संघर्ष करते हो, तो आप निखरते हो। अब आप इतनी सुंदर हैं कि क्या करें! अब आपको संघर्ष तो करना ही नहीं पड़ेगा तो आप निखरोगे भी नहीं। बाहर-बाहर रहोगे सुंदर और भीतर-भीतर रहोगे अतिकुरुप, अग्ली * । समझ में आ रही है बात? और बाहर का जो सौंदर्य है वो तो दस साल में ढल जाएगा, तुम करा लो जितना * बोटॉक्स कराना है। भीतर की जो कुरूपता है वो और और और स्थाई होती जाएगी।

जो आप अपने साथ ज़िंदगी में घटिया-से-घटिया काम कर सकते हैं वो ये है कि आप अपने शारीरिक सौंदर्य की रोटी खाना शुरू कर दें। "ये लड़की बहुत सुंदर है इसको तो बहुत अच्छा लड़का मिला है, बड़े डॉक्टर ने इसको पसंद किया है।" अगर इस वजह से पसंद किया है कि बहुत सुंदर है तो उसने अपने लिए कोई साथी नहीं चुना है, उसने अपने लिए यौनसुख खरीदा है। सीधे-सीधे कहिए एक वैश्या चुनी है।

बात ऐसी है कि नहीं सीधी-सीधी? बोलिए। वो कोई उसको इसलिए थोड़े ही अपने घर ले जा रहा है कि उससे कोई ऊँचे स्तर की बातें करेगा। उसको पता है कि ये किस चीज़ में उपयोगी होगी। ये बिस्तर में उपयोगी होगी — ये इतनी सुंदर है। और देवी जी बहुत मासूमियत के साथ पूछ रही हैं कि "हाय मैं इतनी सुंदर हूँ मैं क्या करूँ?" जो खरीदार कतार बाँध कर खड़े हैं न उनसे पूछ लो क्या करूँ। वो भलीभाँति जानते हैं कि तुम्हारा क्या करना है। तुम्हें ही नहीं पता कि तुम्हारा क्या होने वाला है; खरीदारों को बिलकुल पता है तुम्हारा क्या होने वाला है और वो खरीदार कभी ये नहीं कहते कि, "हम खरीदार हैं।" वो क्या बोलते हैं, हम क्या हैं? "हम प्रेमी हैं, हम तो आशिक़ हैं।"

एक ज़ेन कहानी है, उसमें एक ज़ेन साधिका थी। कहानी के मर्म को समझिएगा, उसका आप अर्थ विकृत कर लेंगे तो कुछ भी और निकाल सकते हैं। पर वो कहानी रची गई है सिर्फ एक तरफ को इशारा करने के लिए। बाकी जो भी उसके अर्थ आपके दिमाग में आएँगे उनको हटाइएगा। तो वो बहुत आकर्षक थी, बहुत आकर्षक थी। तो वो एक ज़ेन गुरु के आश्रम में गई, प्रवेश लेने के लिए उन्होंने उसको मना कर दिया। दूसरे के यहाँ गई उन्होंने भी मना कर दिया, तीसरे ने भी मना कर दिया।

इतना काफी था उसको समझने के लिए कि बात क्या है। उसने एक लकड़ी ली जलती हुई और अपने गाल पर लगा लिया तो वहाँ पर निशान बन गया। फिर वो गई उसको स्वीकार कर लिया।

लोग कहेंगे — ये क्या मतलब है कि कोई अपना रूप ख़राब कर ले तब स्वीकार होगा। नहीं, इसका ये मतलब नहीं है। इसका मतलब ये है कि स्वीकार वो होगा जो बोध को, शिक्षा को, ज्ञान को अपने रूप से ज़्यादा कीमत देता हो। और रूपवती लड़की के साथ ये बड़ी समस्या हो जाती है कि वो सबसे ज़्यादा कीमत अपने रूप को देती है — "हाय मैं इतनी सुंदर हूँ मैं क्या करूँ?"

तो गुरु उससे प्रमाण माँग रहे थे कि, "तू अपने रूप से भी ज़्यादा किसी और चीज़ को तवज्जो देती है क्या?" उसने कहा कि, "हाँ, मैं देती हूँ, मैं ज्ञान के लिए रूप की बलि चढ़ाने को भी तैयार हूँ।" तो फिर उन्होंने कहा कि, "तू आ, अब तू आ सकती है, अब तुझे शिक्षा देंगे।" समझ में आ रही है बात?

तो ये जो पूरा खेल रहा है न सुंदरता का, इससे ज़्यादा किसी चीज़ ने स्त्रियों को नुकसान नहीं पहुँचाया है। समझ में ही नहीं आ रहा, कि ये सुंदरता प्रकृति की एक चाल भर है आपको गर्भ देने की। तुम सुंदरता के जो पैमाने समझते हो, देखते नहीं हो वो सब-के-सब फर्टिलिटी (जनन क्षमता) से संबंधित हैं।

इसी तरीके से पुरुषों में जिन चीज़ों को तुम मस्क्यूलिनिटी (मर्दानगी) या हैंडसम होने का संकेत मानते हो वो भी सब-के-सब फर्टिलिटी से रिलेटेड (सम्बंधित) हैं। तो जो जितनी सुंदर है, प्रकृति ने इंतज़ाम करा है उसको उतनी जल्दी अम्मा बना देने का। अब कर लो तुम जीवन में प्रगति और बोध की यात्रा। और तुम यही सोच रही हो कि सुंदर पैदा होना तो बड़े सौभाग्य की बात है। मैं कह रहा हूँ — सुंदरता को दुर्भाग्य बोल लो ये ज़्यादा सही है। फिर सुंदर हो करके तुमको वो सम्मान और वो अटेंशन (ध्यान) भी आसानी से मिलने लग जाता है जो दूसरों को बड़ी मेहनत करके मिलता है।

एक साधारण सी दिखने वाली लड़की हो स्कूल में या कॉलेज में, वो जब पढ़ाई करेगी, क्लास में ऊँचा स्थान लाएगी, या खेलों में जीतकर दिखाएगी, या किसी और तरीके के किसी क्षेत्र में अपना हुनर दिखाएगी तब उसको इज़्ज़त मिलेगी। तब जाकर के लोग उससे कहेंगे, "क्या बात है! बड़ा अच्छा खेलीं आप। वाह, आपकी तो टॉप रैंक आई है!" उसको तब जाकर के कुछ ध्यान, कुछ अटेंशन मिलेगा।

और जो सुंदर लड़की होगी, वो कुछ नहीं, एक नंबर की डम्ब (बुद्धू) हो, कुछ ना आता हो उसे ज़िंदगी में, एकदम किसी तरीके से उसको प्रमोट कर करके पास किया जा रहा हो। तब भी उसके पास हमेशा लोग इकट्ठा रहेंगे और उसको लगेगा, "देखो मैं तो बड़ी महत्वपूर्ण हूँ, मैं तो बड़ी इम्पोर्टेन्ट हूँ।" और जब तुमको बिना कुछ करे-धरे ही इतना सम्मान और इतना झूठा अटेंशन मिल ही रहा है, तो फिर तुम कोई तरक्की करोगी क्यों?

तो जो चीज़ आपको मिलनी चाहिए मेहनत से वो मिलने लग जाती है जिस्म से। अब आप और ज़्यादा, और ज़्यादा, शरीर केंद्रित, बॉडी सेंटर्ड हो जाते हो। क्योंकि आपको जो मिल रहा है वो किसकी बदौलत मिल रहा है? जिस्म की बदौलत ही तो मिल रहा है।

जब आपको पता है कि आपको ज़िंदगी में जो भी मिल रहा है वो बॉडी (शरीर) के कारण ही मिल रहा है तो फिर अब आप और ज़्यादा बॉडी ही बन जाते हो। "मैं कौन हूँ? मैं तो यही हूँ।" फिर आप क्या करते हो? फिर आप ज़बरदस्त खर्चे करते हो कॉस्मेटिक्स पर। फिर आप दिन के दो-दो, चार-चार घण्टे लगाते हो बस अपना सौंदर्य निहारने में और सँवारने में। फिर आपकी ज़िंदगी के बड़े प्रोजेक्ट्स यही होते हैं कि बाल सीधे कराने हैं और रंगवाने हैं और यहाँ पर ये हो गया है और यहाँ पर ये हो गया है और फलाने नाखून में फ़लाने शेड का कलर करना है।

ये आपकी ज़िंदगी के बड़े मुद्दे हो जाते हैं और आपकी मजबूरी है इन मुद्दों को बड़ा बनाना क्योंकि इन्हीं से आपकी ज़िंदगी है, इन्हीं से आपका पेट चल रहा है, इन्हीं से आपको सम्मान मिल रहा है, इन्हीं से आपकी उपयोगिता है और आप फिर बहुत डर में जीना शुरु कर देते हो। बताओ क्यों? क्योंकि आपको पता है कि रूप ढल रहा है और आपको पता है कि रूप किसी की बपौती नहीं होती। आप रूपवती हैं, कोई आपसे डेढ़-गुनी रूपवती हो सकती है।

आपको पता है, अगर, कि आपके जो रिश्ते हैं वो रूप की बुनियाद पर ही खड़े हैं, तो जल्दी ही कोई दूसरी आ सकती है जिसका रूप आप से भी आगे का हो, तो आप डरे हुए रहते हो हमेशा। आप जिसके साथ हो, आप उस पर बंधन कस कर रखोगे और आप दिन-रात इसी चक्कर में रहोगे कि आपका रूप कहीं ढल ना जाए। लेकिन रूप तो दोपहर की तरह है, साँझ होनी है, उसे ढल जाना है। सूरज हमेशा तो नहीं चमकना और जब वो ढलने लगता है तो फिर आपको हो जाता है *डिप्रेशन*। "अब मुझे बताओ मैं क्या करूँ? मैं इतनी सुंदर हूँ मैं क्या करूँ?"

समझ भी नहीं पाते कि ये जितने घूम रहे हैं आपके सौंदर्य के याचक, शमा के परवाने, ये वास्तव में आपको कोई इज़्ज़त, कोई सम्मान देते नहीं हैं। ये बस आपको बेवकूफ बना रहे हैं आपके मुँह पर। इन्हें आपसे बस एक चीज़ चाहिए। तो आप पलट कर जवाब क्या देती हैं? "तो हम कहाँ से कम हैं, अगर वो हमसे एक चीज़ ले रहे हैं तो हम भी तो उनसे जमकर के कई चीज़ें लेंगे — पैसा, सुविधा, सहूलियतें, सुरक्षा।" ये बहुत सस्ता सौदा कर लिया है आपने। इस व्यापार में पड़िए ही मत।

जिस्म की सुंदरता को अपनी पहचान मत बनाइए। सधा हुआ जिस्म हो, मजबूत जिस्म हो, वो ज़्यादा अच्छी बात है। आकर्षक हो न हो, तगड़ा होना चाहिए ताकि ज़िंदगी में आप जो भी काम करने जा रही हैं, शरीर उसमें असफल ना हो जाए।

और ज़िंदगी में जिन्हें भी बड़े काम करने हैं, उन कामों में एक बाधा शरीर भी बनता है। ऐसा नहीं है कि चुनौतियाँ सिर्फ मानसिक होती हैं। आप कोई बड़ा प्रोजेक्ट उठाइए शरीर भी एक समस्या बनकर खड़ा हो जाता है, कि साथ नहीं दे रहा है। तो शरीर मजबूत रखिए वो कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। कोमल-कोमल, सुंदर-सुंदर रहने से कोई लाभ नहीं।

पुरुषों को तो आपके शरीर में वही आकर्षक लगता है जहाँ पर फैट है और आपके लिए ज़रूरी होना चाहिए वो सबकुछ जहाँ मसल है। अंतर समझिएगा — कोई पुरुष आपकी मसल्स की ओर आकर्षित नहीं होगा, बल्कि आपकी मसल्स ज़्यादा मजबूत हो गईं तो डर कर भगेंगे। वो आपके उन हिस्सों की तरफ बढ़ते हैं जहाँ पर फैट , वसा इकट्ठा है। और आपका उद्देश्य बिलकुल उल्टा होना चाहिए कि ये फैट जहाँ-जहाँ इकट्ठा है, उसको कम करना है। जहाँ तक शरीर की बात है, वहाँ मजबूत होनी चाहिए आपकी *मसल्स*। और शरीर से आगे क्या मजबूत होना चाहिए? मन, और मन की मजबूती किसमें है? समझदारी में, ज्ञान में, बोध में। समझ रहे हैं?

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