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धर्म-परिवर्तन बुरा लगता है? || (2021)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा एक सवाल है। मैं, जो राष्ट्र के लिए काम करते हैं, ऐसे दो-तीन संगठनों से जुड़ा हूँ। और समाज में जो चल रहा है, सोशल-मीडिया पर चल रहा है, जो कन्वर्ज़न (धर्म-परिवर्तन) का काम चल रहा है ये, उससे न मेरे मन में काफ़ी प्रभाव पड़ता है। कुछ ऐसे स्टेट (प्रांत) हैं, जैसे जम्मू-कश्मीर है, मेवात है, इसमें पहले हिन्दू जनसंख्या कुछ और थी। पहले नब्बे प्रतिशत थी, अब उसको नब्बे से बदल कर दस कर दिया है, दस वाली नब्बे हो गयी है। तो इससे ज़्यादा प्रभाव पड़ रहा है, और मैं काफ़ी परेशान रहता हूँ, कि भाई हमारे पास समय कम है और हम काम कर नहीं पा रहे। और बाहर से फंडिंग भी होती है और कुछ प्रोपगेंडा (दुष्प्रचार) ही चलाया जा रहा है, कि भाई देश को कैसे झुकाया जाए। इस बारे में कृपया मार्गदर्शन दीजिए।

आचार्य प्रशांत: मैं क्या मार्गदर्शन दूँ, ये बात ही शर्म की नहीं है क्या? छोड़ो बाहर वालों को, मुझे नहीं पता फंडिंग होती है कि नहीं, मुझे नहीं पता कौन प्रोपगेंडा चला रहा है, मुझे नहीं पता कौन कन्वर्ट कर रहा है। मैं तुमसे पूछ रहा हूँ, अगर तुम नब्बे हो तो तुम कन्वर्ट होकर के दस कैसे हो गए? तुममें इतनी कमज़ोरी क्यों है?

कौन कर रहा है? कोई कर रहा होगा, उसकी ओर उँगली बाद में उठेगी, पहले अपनी ओर बताओ न! धर्म तो ऐसी चीज़ होती है कि कोई गर्दन पर तलवार रख दे, (फिर भी) नहीं छोड़ेंगे। माँ होती है धर्म, माँ को छोड़ दोगे क्या? शरीर को जो जन्म दे वो शारीरिक माँ है, और तुम्हारी सच्चाई को जो जन्म दे उसे धर्म कहते हैं। ये कौन-से लोग हैं जो धर्म छोड़ने को तैयार हो जाते हैं, पहले मुझे उनका नाम बताओ, उन्होंने छोड़ कैसे दिया? किसने छुड़वाया, ये बाद की बात है, जिन्होंने छोड़ा है, पहले वो जवाब दें न, उन्होंने कैसे छोड़ दिया?

और जो इतनी आसानी से छोड़ने को तैयार है, वो कभी धर्म में था ही नहीं, वो नाम का रहा होगा धार्मिक; तो कोई कन्वर्ज़न नहीं हुआ है, वो आदमी धर्म को पहले ही छोड़ चुका था। धार्मिक आदमी मर जाएगा, धर्म नहीं छोड़ सकता। धर्म को बचाना है तो लोगों को पहले धार्मिक बनाओ; धार्मिक उनको बनाया नहीं है, कन्वर्ज़न के ख़िलाफ़ रो रहे हो, सफलता नहीं मिलेगी। लोगों में धर्म के प्रति प्रेम लाओ। दुनिया-भर में सबसे ज्यादा कन्वर्ज़न्स भारत में ही क्यों होते हैं? क्योंकि सनातनी को सनातन धर्म का कुछ नहीं पता है।

तुम कहते हो, “ये होता है, वो होता है, हिन्दू लड़कियाँ कन्वर्ट हो जाती हैं, शादी कर लेती हैं।“ क्यों हो जाती हैं, और (दूसरी लड़कियाँ) क्यों नहीं होतीं? उनको धर्म से वैसे ही कोई मतलब नहीं था, तो जैसे ही उनको कहीं पैसा दिखा या सेक्स दिखा, वो कहती हैं, “कर लेंगे कन्वर्ट हम।" पहला प्यार तो धर्म होना चाहिए न? राम से प्यार नहीं है, तो आ गया कोई ज़िंदगी में, तो छोड़ दिया राम को। समस्या अप्रेम की है, कन्वर्ज़न वगैरह बाद में बात करेंगे। होने को तो ये भी हो सकता था कि जो दस वाले हैं, जो थोड़े-से हैं, कमज़ोर हैं, वो दस वाले कन्वर्ट होकर नब्बे में शामिल हो जाते, वो क्यों नहीं हुए? उन्हें अपने धर्म से, अपने मज़हब से प्यार है, वो नहीं छोड़ते, तुम क्यों छोड़ देते हो? क्योंकि हमें अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी धर्म से कहाँ कोई मतलब है!

कितने हिन्दू मंदिर जाते हैं? यहाँ हम ऋषिकेश में हैं, यहाँ मुझे बताना आश्रमों में भीड़ है या कैफ़े में? और आश्रमों की कैसी हालत देख रहे हो? बरबाद हैं, झड़ रहे हैं, गिर रहे हैं, खण्डहर हो चुके हैं। ये लोग हैं — लड़के-लड़कियाँ ही तो ज़्यादा यहाँ आ रहे हैं ऋषिकेश में, वीकेंड-क्राउड (साप्ताहांत-भीड़) — ये जो आश्रमों की ओर मुड़ कर नहीं देख रहे, मंदिरों में कदम नहीं रख रहे हैं, जा कर कैफ़े में बैठे हैं, चुम्मा-चाटी में लगे हैं, बीच (नदी किनारे) पर घूम रहे हैं, वहाँ पर टिक-टॉक अपना बना रहे हैं। इन्हें कन्वर्ट करने की कोई ज़रूरत है या ये पहले ही कन्वर्ट हो चुके हैं? और इनका कन्वर्ज़न किसी दूसरे धर्म में नहीं हुआ है, ये इर्रिलीजियस (अधार्मिक) हो गए हैं, फ्रॉम बींग रिलीजियस टु इर्रिलीजियस (धार्मिक से अधार्मिक)। धर्म तो इन्होंने छोड़ दिया है, ये कब के धर्महीन हैं। इनकी धार्मिकता मर चुकी थी कब की, बस जब लाश जलती है तो हम शोर मचाते हैं, कि “अरे! कन्वर्ज़न हो गया, कन्वर्ज़न हो गया।" शोर कब मचना चाहिए, लाश के जलने पर, या मौत होने पर? पर जब मौत हुई तो हमें पता भी नहीं चला, क्योंकि साइलेंट-मर्डर (चुपचाप क़तल) चल रहा है; और वो साइलेंट-मर्डर करने वाले दूसरे धर्मों के लोग नहीं हैं, वो साइलेंट-मर्डर हम ख़ुद कर रहे हैं।

सम्मान मिलना चाहिेए राम को और कृष्ण को, राम कृष्ण की जगह देखो कि ये समाज किसको सम्मान देता है; हो गया न कन्वर्ज़न , ख़त्म। आदर्श होने चाहिए वो जिन्होंने धर्म का काम किया, जिन्होंने सत्य की राह पकड़ी, उसकी जगह देखो न कि हमारे आदर्श कौन बन चुके हैं। बताओ कि हमारे पाठ्यक्रम में, स्कूलों-कॉलेजों के सिलेबस में ऋषियों और संतों के लिए कितनी जगह है? तो फिर ये जो पीढ़ी निकल कर आती है, इसका धर्म से कोई सम्बन्ध ही नहीं होता, तो ये आसानी से कन्वर्ज़न का शिकार हो जाते हैं।

और कन्वर्ज़न , सुनो अच्छे से, सिर्फ़ यही नहीं होता है कि किसी ने अपना नाम बदल लिया और वो हिन्दू से मुसलमान या ईसाई हो गया; कन्वर्ज़न ऐसे भी होता है, जैसे अभी कुछ दिन पहले मैं कह रहा था, कि सावित्री सैवी बन गयी। ये कह तो यही रही है, कि “मैं अभी-भी हिन्दू हूँ”, पर ये अभी हिन्दू है नहीं। और यहाँ पर तीन-सौ लोग बैठे हैं, उसमें से बहुत कम होंगे ऐसे, जिनके जेरी, जॉन, सैवी, कृष, ऐसे नाम न हों। जगदम्बा जैगी है, मनोहर मेनी है, आनंदिता एन्डी है; कन्वर्ज़न की ज़रूरत है? धर्म तो कब का छोड़ दिया है, पहले ही छोड़ दिया है। है कि नहीं है?

माँ-बाप ने बड़े प्यार से नाम रखा होता है, जिस दिन तुम उस नाम का विधर्मीकरण करते हो, उस दिन माँ-बाप सो रहे थे क्या? वो नाम का तुमने शॉर्ट-फॉर्म नहीं करा है, वो तुमने विधर्मीकरण कर दिया है नाम का। नाम धर्म से निकलता है न? जिस दिन तुमने अपना नाम विकृत किया, डिस्टॉर्ट किया, उस दिन तुमने अपने नाम से धर्म को हटा दिया, उस दिन हुआ था कन्वर्ज़न * । होली-दिवाली का तुम्हें कुछ पता नहीं, पता तुम्हें क्रिसमस और * हेलोवीन का भी नहीं है, लेकिन जिस दिन तुम्हें होली-दिवाली से ज़्यादा मज़ा क्रिसमस और हेलोवीन में आने लगा था, उस दिन तुम कन्वर्ट हो चुके थे। अब कन्वर्ज़न बचा कहाँ है? और ऐसा नहीं कि तुम क्रिसमस की ओर इसलिए जा रहे हो क्योंकि तुम्हें जीसस समझ में आते हैं या तुम्हें जीसस के साहस से प्रेम है, कुछ नहीं। वहाँ चकाचौंध है, कैपिटलिज़्म (पूँजीवाद) है, मज़ा आता है, क्रिसमस-क्राउड, क्रिसमस-शॉपिंग, रेड एंड व्हाइट * । तब हम कुछ कहते नहीं, तब तो हमें लगता है, “ये तो बहुत * लिबरल * (उदारवादी) बात है न!” कितनी * लिबरल बात है ये?

ब्रम्हानन्द शास्त्री बन गए ब्रैंडी। ब्रम्हानन्द शास्त्री ब्रैंडी है, ये क्यों लिख रहा है अभी-भी, कि “मैं हिन्दू हूँ”? क्यों? आपमें से भी बहुत ऐसे हैं, आपमें से कइयों के बच्चे ऐसे हैं। एक चाँटा कान पर, जिस दिन आप सुनें कि सावित्री सैवी बनी है, नहीं तो बाद में मत बोलिएगा, “ये कन्वर्ट कर गयी।“ एक आदमी बिलकुल बीमार हो, उसकी इम्यूनिटी एकदम गिरी हुई इम्यूनिटी है, लो-लेवल इम्यूनिटी है। उसे एक वायरस लग जाए, वायरस को दोष देंगे? बोलिए, वायरस को दोष देना है? पेड़ एक खोखला खड़ा हुआ है, जड़े नहीं हैं उसके पास, हवा चली, गिर गया, हवाओं को दोष देना है? माँ-बाप बच्चों को अपने साथ बीयर पिला रहे हैं, मंदिर नहीं ले जा रहे हैं; कौन-सा हिन्दू!

ये जो आईबी करिकुलम है, इसके बच्चे देवनागरी नहीं पढ़ पाते, छठीं, आठवीं में आ जाएँगे, फिर भी नहीं पढ़ पाते। उनका पूरे तरीके से अ-भारतीयकरण हो चुका है। स्पैनिश, फ्रैंच, रशियन, ये सब पढ़ रहे हैं, हिन्दी नहीं, एकदम नहीं। (व्यंग्यात्मक लहज़े में) धर्म! क्या मगरमच्छ के आँसू बहा रहे हैं हम! हमने ख़ुद अपने बच्चों से धर्म छीना है, क्यों? क्योंकि हमें पैसे की हवस थी। “अरे! ये उपनिषद् वगैरह पढ़ कर क्या मिलेगा? तुम बाइजूज़ पढ़ो, कोडिंग सीखो।" छठी क्लास का बच्चा है, उसे कोडिंग सिखाई जा रही है; उससे पूछ दो, “अर्जुन कौन था, कृष्ण कौन थे?” उसे नहीं पता, वो कोडिंग पढ़ रहा है, कोडिंग * । और माँ-बाप, “हम्म्म...(गर्व की अनुभूति अभिव्यक्त करते हुए), हमारा * टू बी.एच.के. था, ये थ्री बी.एच.के. ले कर आएगा, उसके बाद हमें उसमें रुकवाएगा।“

एक आया, उसका सरनेम था सीगल, एस-ई-ए-जी-यू-डबल एल, समझ रहे हैं न, क्या था उसका नाम वास्तव में? सहगल। उसने अपना नाम सीगल बना लिया है (एक समुद्री पक्षी), “मैं तो पंक्षी हूँ, मैं तो उड़ती हूँ।" नहीं, ये तो मैंने हिंदी में बोल दिया, वो स्पेनिश में बोलती है।

आप जिन पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने कन्वर्ट कर लिया, वो जैसे भी हैं, अपने धर्म, अपने मज़हब का पालन करते हैं, आप कितना करते हैं? दूसरे को दोष देना हमेशा आसान है न? अच्छा, मान लीजिए कोई कन्वर्ट नहीं करा रहा, ठीक है, नाम के हिन्दू हैं, इतने से हो जाएगा? किसी ने कन्वर्ट नहीं भी कराया, तो? भीतर से तो वो पहले ही कन्वर्टेड हैं। यही खेद की बात है न, कि हम ऐसे लोग हैं जिनके घरों में उपनिषद् भेजने की नौबत आयी। ये नौबत आनी चाहिेए थी? घर-घर में तो पहले से ही मौजूद होना चाहिए था उपनिषद्, हमें क्यों भेजना पड़ रहा है? और ज़बरदस्ती भेजना पड़ रहा है।

यूट्यूब पर बच्चों के लिए वाकई ऐसे वीडिओ मौजूद हैं, * "यू नो, देयर वाज़ दिस रियली कूल चैप, कॉल्ड रामा, एंड यू नो, देयर वाज़ दिस लेडी विथ हिम, द वाइफ़ी, कॉल्ड सीता। एंड देन दिस रियली नास्टी चैप, एंड ही हैड सम टेन हेड्स ऑर समथिंग, ही टुक हर अवे। ओह माय गॉड! एंड देन रामा मेड एन आर्मी ऑफ़ मन्कीज़ एंड ऑल। साउंड्स सो कूल, नो? मन्कीज़ इन द आर्मी! एंड देन ही बीट-अप रावना एंड टुक बैक सीता। एंड दैट इज़ रामायना फ़ॉर यू।" * (तुम्हें पता है, राम नामक एक काफ़ी अच्छा व्यक्ति था, और तुम्हें पता है, उनके साथ एक महिला थी, उनकी पत्नी, उनका नाम सीता था। और फिर एक बहुत बुरा आदमी था, और उसके पास कुछ दस सिर या कुछ और था, वो उसे ले गया। बाप रे! और फिर राम ने बंदरों की सेना बनायी। काफ़ी कूल है न? सेना में बंदर! और फिर उन्होंने रावण को पीटा और सीता को वापस ले आए। और ये आपके लिए रामायण है।)

हम सबके घरों में ये हो रहा है, ठीक है न, आपको पता है। मैं जिस वीडिओ की बात कर रहा हूँ उसके सैकड़ों मिलियन व्यू हैं। लिबरलिज़्म (उदारवाद) के नाम पर हमने कुछ भी चला रखा है, किसी को कुछ भी करने और बोलने की अनुमति दे रखी है। इसलिए शक्ति चाहिए, पावर इसलिए चाहिए, ताकि इस तरह की चीज़ों को बैन (प्रतिबन्धित) करा दूँ। बैन ही नहीं होना चाहिए, इस तरह के काम सज़ा के पात्र हैं, जेल होनी चाहिए।

आप तो फिर भी मुझसे बात कर ले रहे हैं, कैंपसेज़ (विश्वविद्यालय परिसर) में मेरी बातचीत होती है, वो सिर्फ़ अंग्रेज़ी में बातचीत करते हैं। अंग्रेजी चैनल पूरा भरा ही उस चीज़ से हुआ है, या तो उसमें जो इंग्लिश में उपनिषदों पर प्रोग्राम चलता है वो है, नहीं तो कैम्पस वाली बातचीत। उनको बोलो, “पूछो”, वो अंग्रेज़ी में ही पूछेंगे, उन्हें नहीं समझ में आती हिंदी। मैं उनसे बोल दूँगा ‘पदार्थ’, वो बोलेंगे, " पोदार्थ, व्हाट इज़ दैट पोदार्थ? योर हिंदी इज़ वेरी एग्जॉटिक (असाधारण)। दीज़ आर पोदार्थ?” इन्हें पदार्थ नहीं पता! है कहाँ का वो? धनबाद का।

(श्रोतागण हँसते हैं)

दो साल से बैंगलोर में इंजीनियरिंग कर रहा है, ‘पोदार्थ’ कर रहा है। ये मेरे हत्थे चढ़ जाए, मैं बात करूँगा ही नहीं। इतनी कसरत क्यों करता हूँ, ऐसों के ही स्वागत के लिए। “यू सेड समथिंग, एंड यू नो, आई वाज़ लाइक व्हाट इज़ प्रोकृति?” पहले तो ये ‘आई वाज़ लाइक' क्या होता है, ये हर चीज़ में ‘लाइक’ क्या होता है? “बी लाइक,” “लाइक।" तुझे पूछना है, पूछ ले “व्हाट इज़ प्रोकृति?” “एंड आई वाज़ लाइक”, ये ‘लाइक’ क्या है? कौन-सी भाषा है ये? ये अंग्रेज़ी भी नहीं है, ये निब्बिश (किशोरों की भाषा) है।

ये हम सबके साथ हो रहा है, इसलिए कह रहा हूँ समय नहीं है। हमें पता भी नहीं चला है, कैंसर सर से पाँव तक फैल चुका है।

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