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लेख
आप जानते हैं शिव का अपमान करने वालों को? || (2021)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपको सुनने से पहले मैं एक भजन सुनता था उसमें बोलते थे कि "सिर से तेरी बहती गंगा, काम मेरा हो जाता चंगा, नाम तेरा जब लेता।" तो भजन सुनते-सुनते मुझे लगता था कि मैं महादेव के कुछ नज़दीक हो गया हूँ और अब मेरा काम चंगा हो जाएगा। लेकिन मेरी लाइफ का ग्राफ ऊपर से नीचे जा रहा था तो मैं सोचता था कि शायद भजन कम सुन रहा हूँ। तो मैं और भजन बढ़ा देता था लेकिन ग्राफ और नीचे चलता चला जा रहा था। इस तरह के भजन जो मीनिंगफुल (अर्थपूर्ण) नहीं होते, उसमें मनोरंजन तो है लेकिन अब उसमें महादेव का नाम आ जाता है तो ये समझ में नहीं आता कि ये धार्मिक है कि नहीं।

आचार्य प्रशांत: देखिए, इस वक़त जितना अपमान, दुर्भाग्यवश, महादेव शिव का कर रहे हैं उससे ज़्यादा किसी का नहीं। शिव को खिलवाड़ बना लिया है, बिलकुल उनके नाम पर जो बोलना है बोलो, उनके नाम पर जो कुछ भी कहना है कहते रहो, उनके नाम पर यूँ ही अपनी कुछ बात फ़ैला दो कि ऐसा कर दो वैसा कर दो। शिव क्या हैं, शिवत्व क्या है, दूर-दूर तक कोई समझ नहीं, कुछ नहीं। और ये बहुत-बहुत बुरे लक्षण हैं। ये लक्षण आपदा के हैं। इससे ज़बरदस्त संकट आना है, आ गया है क्योंकि जो सबसे ऊँचा है अगर आपने उसी के नाम के साथ खिलवाड़ कर लिया तो अब क्या बचा आपके लिए?

अभी कोई मेरा वीडियो रहा होगा जिसमें मैंने कहा कि धर्म और दूध का जो व्यर्थ रिश्ता बना रखा है उसको ख़त्म करो। तो लोगों ने आकर के कहा कि "शिवलिंग पर दूध चढ़ाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि हमारे गुरु जी ने बताया है कि जो दूध का फैट होता है वो शिवलिंग के पत्थर को चटकने से रोकता है।" जब धर्म के नाम पर इस तरह की बातें होनी शुरू हो जाएँ तो समझ लेना सब कुछ ख़तरे में है।

शिव का कुछ पता नहीं, शिवत्व से प्रेम नहीं और शिवलिंग की इतनी बातें। लिंग का तो मतलब होता है प्रतीक, इशारा कि जिसको देख कर के जो असली है उसकी याद आ जाए।

बात बस इतनी सी है कि जब प्रथा शुरू हुई थी तो कृषक समाज था तब। खेती करते थे और खेती में पूरा जो गौवंश है उसका इस्तेमाल होता था। बैल का भी इस्तेमाल होता था, गाय भी होता था। तो उस समय ऊँची-से-ऊँची चीज़ जो थी वो थी आपके पास दूध। तो उस समय के लोगों ने इस भाव के साथ दूध अर्पित करना शुरू किया कि साहब हमारे पास सबसे मूल्यवान वस्तु यही है। क्योंकि इसी को पीते हैं तो हमें लगता है कि हमारी सेहत वगैरह बन रही है तो वही अर्पित किया है। भावना तो यही थी कि तुम्हारे पास जो सबसे ऊँचे मूल्य की चीज़ हो उसको समर्पित करो।

तो ये वहाँ से प्रथा आ रही है। वहीं से फिर, उसी क्रम में यह भी प्रथा बनी कि मंदिरों में सोने चांदी का चढ़ावा भी चढ़ने लगा। भाव फ़िर वही था कि जो तुम्हारे पास मूल्यवान है वो तुम परमात्मा को समर्पित करो। तो जब दूध लगता था हमारे पास मूल्यवान है तब दूध कर देते थे। दूध से आगे बढ़े तो सोना-चांदी करने लगे। तुम आज भी दूध चढ़ा रहे हो और इस तरीके के घटिया तर्क दे रहे हो कि दूध डालने से पत्थर चटकता नहीं है। तुम दूध का इस्तेमाल मॉइश्चराइजर की तरह कर रहे हो। किसको पागल बना रहे हो?

शिव के नाम पर, कृष्ण के नाम पर, जो भी किया जा रहा है वो सब देख कर के बहुत दुःख होता है। गीता ना पढ़ी है इन्होंने, ना इनको समझ में आती है। ना पढ़ना चाहते हैं ना समझना चाहते हैं। हाँ कृष्ण के नाम पर इधर-उधर की व्यर्थ कहानियाँ उड़ाते रहते हैं। इनसे पूछो, "रिभुगीता पढ़ी?" नहीं। "शिवगीता पढ़ी?" नहीं। "अवधूतगीता पढ़ी?" नहीं। इन सबसे शिव का संबंध बनाया जाता है कि इन गीताओं में जो ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञान है वो कहते हैं कि वो शिवप्रदत्य है।

तुम्हें शिव से अगर वाकई प्रेम होता तो कैसे हो सकता है कि तुमने रिभुगीता ना पढ़ी होती? और जो गुरु लोग घूम रहे हैं शिव की ज़्यादा बात करते हुए, इनके मुँह से तुम कभी नहीं नाम सुनोगे, ना रिभु का, ना दत्तात्रेय का क्योंकि वो नाम ही इनके लिए ख़तरा हैं। अगर किसी ने रिभुगीता पढ़ ली तो ये शिव के बारे में जो अफ़वाहें फैलाते हैं और धंधा चलाते हैं, वो धंधा चौपट हो जाएगा। अगर कोई वाकई श्रीमद्भगवद्गीता समझने लग गया तो कृष्ण के नाम पर जितनी संस्थाएँ चल रही हैं तुरंत बंद हो जाएँगी।

ये सब हमेशा से हो रहा था लेकिन अब इस समय में जो डेमोक्रेटाइजेशन ऑफ क्रिएशन हुआ है न, कि कोई भी क्रिएटर हो सकता है और जो सोशल मीडिया की यकायक पहुँच बढ़ी है उसने स्थिति बहुत भयानक कर दी है। अब बात ये है कि कोई भी आकर के क्रिएटर है। शिव के नाम पर कोई भी कुछ भी बोल सकता है। और जितनी निचले तल की बात होती है उतने ज़्यादा लोगों को वो आकर्षित करती है।

असल में आदमी की जो चेतना है उसका जो तल होता है वो एक पिरामिड जैसा होता है। नीचे चौड़ा, ऊपर महीन। एक पिरामिड में सबसे ज़्यादा लोग कहाँ पर होते हैं? नीचे। तो आपका जो कंटेंट (विषय) है, जो आपकी बात है वो जितनी घटिया होगी उतनी ज़्यादा पॉपुलर (लोकप्रिय) होगी। शिवत्व की अगर आपने असली बात कह दी तो बहुत ज़्यादा लोग सुनेंगे ही नहीं क्योंकि वो बात ख़तरनाक होती है। हम जिस तरीके से जी रहे हैं, जैसे हमारे दिमाग हैं, हमारी व्यवस्थाएँ हैं, हमारे रिश्ते हैं, अगर वाकई असली शिवत्व हमें समझ में आ गया तो हमें बदलना पड़ेगा अपने-आपको, तो हम बदलना चाहते नहीं। तो हम शिव के नाम पर झूठी बातें फैलाते हैं। ये शिव का अपमान है और शिव का अपमान तो कोई क्या ही करेगा, हम अपने ऊपर दुर्गति और नर्क आमंत्रित कर रहे हैं।

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