Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
क्या पुनर्जन्म होता है? || आचार्य प्रशांत (2018)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
7 min
319 reads

प्रश्न: आचार्य जी, क्या पुनर्जन्म होता है?

आचार्य प्रशांत जी: किसका?

किसका?

तुम कहो, “नाम है,” तो मैं पूछूँ, “किसका?”

पुनर्जन्म होता है। किसका?

प्रश्नकर्ता: आत्मा का।

आचार्य प्रशांत जी: हाँ ठीक। आत्मा का होता है।

आप आत्मा हो?

प्रश्नकर्ता: आत्मा और शरीर।

आचार्य प्रशांत जी: आत्मा जगह छोड़ती है कुछ जोड़ने के लिए उसमें?

किसी चीज़ में कुछ कमी हो, तो उसमें कुछ जोड़ा जाए।

पूर्ण में कुछ जोड़ सकते हो?

तुम जो कुछ हो , उसका कोई पुनर्जन्म नहीं होता। तुम्हारा कोई पुनर्जन्म नहीं होता। जहाँ तक आत्मा के पुनर्जन्म की बात है, वो पुनर्जन्म नहीं है। वो खेल है, वो लीला है।

या तो कह दो कि -“आत्मा का न कोई जन्म है न कोई मृत्यु,” या ये कह दो कि – “अनन्त जन्म हैं और अनन्त मृत्यु।” ये दोनों एक ही बात हैं। ये भी कह सकते हो, “आत्मा का न जन्म होता है और न मृत्यु,” या ये भी कह सकते हो, “आत्मा मुक्त है अनन्त जन्म लेने के लिए और अनन्त बार मरने के लिए।”

रही तुम्हारी बात, तुम तो जो अपने आप को माने बैठे हो, तुम्हारा तो एक ही जन्म है। तुम्हें इसी जन्म में जो करना है कर लो, दूसरा जन्म नहीं मिलने वाला।

“अवसर बारबार नहीं आवै।”

प्रश्न २: आचार्य जी, ऐसा सुना है कि बहुत लोगों को अपने पूर्वजन्म की यादें याद रहती हैं। ऐसे बहुत किस्से सुने हैं। तो वो सब क्या है?

आचार्य प्रशांत जी: एक बार मैंने किसी से पूछा था, “किसी को कभी ये क्यों नहीं याद आता कि पिछले जन्म में वो गधा था?”

पहली बात तो, चौरासी लाख योनियों में मनुष्य जन्म एक होता है। मनुष्य जन्म में आने की सम्भावना क्या है? एक बटा चौरासी लाख। और जो लोग गणित में ‘प्रोबेबिलिटी’ पढ़ें हैं, उनसे पूछता हूँ कि दो बार लगातार मनुष्य जन्म पाने की सम्भावना क्या है? ‘एक बटा चौरासी लाख’ गुणा ‘एक बटा चौरासी लाख’। तो कितनी सम्भावना बनी? एक बटा चौरासी लाख गुणा चौरासी लाख।

तो अगर किसी ने जन्म ले भी रखा है, तो पूरी-पूरी सम्भावना है कि वो ‘मनुष्य’ किसी भी हाल में नहीं रहा होगा। तो अगर किसी को अपना पिछला जन्म याद आए भी, तो उसे ये याद आना चाहिए न कि – “मैं अफ्रीका का चिम्पांज़ी था।”

और ये किसने कह दिया कि जीवन मात्र पृथ्वी ग्रह पर है? पृथ्वी तो ब्रह्माण्ड का एक तिनका, धूल का कण है एक। कितने ग्रहों पर जीवन है। किसी को ये क्यों नहीं याद आता कि – “मैं फलानी आकाश-गंगा में एक एलियन (अन्य ग्रह का प्राणी) तिलचट्टा था”? लोगों को ये ही कैसे याद आता है कि – “बस अभी पैदा हुआ हूँ, पिछले जन्म में मैं पिछले गाँव में था। और वहाँ मेरी बीवी अभी भी ज़िंदा है।”?

(हँसी)

ये तो तुमने अनोखी बात बताई।

पहली बात ये कि अखिल ब्रह्माण्ड में तुमको दो बार लगातार मनुष्य जन्म मिला, इतने तो तुम पुण्यात्मा नहीं हो कि दो बार तुम्हें लगातार मनुष्य जन्म मिल जाए। पुनर्जन्म जिन्होंने तुम्हें बताया, उन्होंने ये भी तो बताया कि – “अगला जन्म चौरासी लाख योनियों में किसी भी योनि में हो सकता है।” पर तुम बता रहे हो कि पिछली बार भी आदमी थे, और इस बार भी आदमी हो, और अगली बार भी आदमी पैदा होओगे। और यहीं सौ-पचास किलोमीटर के दायरे में पैदा होओगे।

(हँसी)

ये याद है नहीं कि परसों दरवाज़ा लगाकर के चाबी कहाँ छोड़ दी है, परसों चाबी कहाँ छोड़ आए। और परसों जूता उतारा था, तो मोजा जूते में छोड़ा था या धुलने डाल दिया था, ये याद नहीं है। और ये याद है कि सत्तर साल पहले बीवी कौन थी। क्यों किसी बेचारी पर डोरे डालते हो?

प्रश्नकर्ता: लेकिन ऐसी बहुत-सी कहानियाँ सुनने में आती हैं।

आचार्य प्रशांत जी: ऐसी बहुत सी ..?

श्रोतागण: कहानियाँ

आचार्य प्रशांत जी: कहानियाँ ।

प्रश्नकर्ता: लेकिन आप जैसे बता रहे हैं कि चौरासी लाख योनियाँ होती हैं। क्या इसका भी कोई प्रमाण है कि चौरासी लाख योनियाँ ही होती हैं?

आचार्य प्रशांत जी: जिन्होंने भी पुनर्जन्म कि बात की है, उन्होंने चौरासी लाख योनियों की भी बात की है न?

प्रश्नकर्ता: हाँ, की है ।

आचार्य प्रशांत जी: तो समझोगे या नहीं समझोगे उस बात को? और पूछोगे कि नहीं अपने आप से कि – “स्मृति सारी कहाँ होती है?” यहाँ, मस्तिष्क में। अभी सिर पर कोई एक डंडा मार दे, सुबह क्या हुआ ये याद नहीं रहेगा। इस सिर पर अभी एक डंडा पड़ जाए, तो इसे ये भी नहीं याद रहता कि सुबह क्या हुआ था। कई बार तो डंडा न भी पड़े तो भी याद नहीं रहता कि सुबह क्या हुआ था।

सारी स्मृति इस मस्तिष्क में, इस पदार्थ में वास करती है। वो अगर डंडा भी खा ले, तो भी भूल जाता है। बताओ जल जाने के बाद कैसे याद रखेगा।

स्मृति आत्मा में तो होती नहीं। या आत्मा भी याद रखती है? स्मृति कहाँ होती है?

प्रश्नकर्ता: मस्तिष्क में ।

आचार्य प्रशांत जी: और उस पर अगर डंडा भी पड़ गया, तो स्मृति गई। ये मस्तिष्क एक बक्सा है, इस पर एक डंडा मारो तो स्मृति चली जाती है। और इस बक्से को जब तुम राख कर देते हो, तो बताओ स्मृति किसके पास बचेगी?

थोड़ा बुद्धि का प्रयोग करना।

प्रश्नकर्ता: ऐसे किस्से सुनते हैं, तो थोड़ा ताज्जुब होता है।

आचार्य प्रशांत जी: जो चीज़ सत्य के विपरीत जाती हो, उसमें ताज्जुब क्या? ताज्जुब ये होना चाहिए कि आदमी इतना झूठा कैसे हो सकता है। उसमें ताज्जुब ये होना चाहिए कि आदमी के पास कितनी क्षमता है अपने आप को धोखा दे लेने की।

ये कथा-कहानी, जिज्ञासा का खेल नहीं चल रहा है कि हम कहें, “बहुत लोग ऐसा कहते हैं।” फ़िर अगली बार कहीं और जाओगे, तो कहोगे, “वो आचार्य जी के पास गए थे, वो ऐसा कह रहे थे।” इतना कुछ सिर्फ़ उत्सुकतावश मत सुनो।

जो सुनो, उसे गुनो।

पहले बात को समझ लो, जगह-जगह से अफ़वाहें मत इकट्ठा करो। फिर तो मेरी बात भी तुम्हारे लिए क्या हो जाएगी?

श्रोतागण: अफ़वाह।

आचार्य प्रशांत जी: फिर कहोगे, “पाँच लोग ऐसा बोलते थे, और छठे थे वो आचार्य जी, वो ऐसा बोलते थे। अब सातवें आप हैं स्वामी जी, बताईए आप क्या बोलते हैं।”

तो ये सब मत करो ।

प्रश्न २: आचार्य जी, गीता का एक श्लोक है,

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥”

श्लोक में श्री कृष्ण किस प्रकार के कर्म की, और किस प्रकार के फल की बात कर रहे हैं?

आचार्य प्रशांत जी: इस श्लोक में श्री कृष्ण बस ये कह रहे हैं कि –

जो कुछ यंत्रवत होता रहता है तुम्हारे भीतर, ये आवश्यक नहीं है कि तुम उसके शिकंजे में सदा फँसे रहो।

कृष्ण इस यांत्रिक जीवन के ख़िलाफ़ जाने की बात कर रहे हैं, क्योंकि जो कुछ यांत्रिक है, वो एक यंत्र की तरह ही काम रहा है। और कृष्ण कह रहे हैं, “तुम अगर यंत्र की तरह जी रहे हो, तो क्या ख़ाक जी रहे हो।”

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles